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५२. पत्र : लाजरसको

मद्रास

[अप्रैल १७, १९१५ के बाद]

प्रिय लाजरस,

आपका पत्र मिला। भारतीय राहत विधेयकको ऐसी मजबूत नींवका काम देना चाहिए जिसपर एक मजबूत इमारत बनाई जा सके। वह इसी उद्देश्यसे बनाया भी गया था। में जब दक्षिण आफ्रिकासे चला था तब मैंने साफ चेतावनी दी थी कि सरकार इसका दूसरा अर्थ लगा सकती है। ऐसे प्रत्येक मामलेमें हमारे पास - - कानूनी और नैतिक -अपने अलग उपाय हैं। कानूनी उपायका आश्रय हम चाहे लें चाहे न लें। नैतिक उपायका आश्रय लेना सदैव हमारे हाथमें है और होना भी चाहिए और वह उपाय है सत्याग्रह । यदि प्रशासन समझौतेकी भावनाका पालन नहीं करता और कठिनाइयाँ पैदा करता है तो हमारे सामने अन्तिम उपाय सत्याग्रह ही है। मुझे आशा है कि आपमें से किसीने भी यह न सोच लिया होगा कि हमें सत्याग्रह कभी करना ही न पड़ेगा। यही आशा की जा सकती है कि सरकारने अपना रुख बदल दिया होगा और वह बिना सोचे संघर्षको पुनः आरम्भ करनेका निमन्त्रण न देगी। किन्तु यह अन्तिम और अचूक उपाय सदा हमारे हाथमें है और जब कभी आवश्यक हो उसे हम काममें ला सकते हैं। लेकिन यह जानना जरूरी है कि उसको कब काममें लाया जाये । सामान्यत: समझौते के समय जिन मूल सिद्धान्तोंका निर्धारण किया गया था यदि उनका पालन न किया जाये तो सत्याग्रह करनेके लिए पर्याप्त कारण हैं। आपको राहत [विधेयक ] का मुख्य उद्देश्य समझ लेना चाहिए। में मुख्य मुद्दे फिरसे दुहरा दूं। पहला तीन पौंडी करको हटाना, दूसरा, भारतीय पत्नियोंके दर्जेको बहाल करना और तीसरा, एशियाई अधिनियमको रद करना, मेरा खयाल है कि ये तीनों बातें लगभग सदाके लिए मनवा ली गई हैं। वर्तमान कानूनोंके न्याय-सम्मत प्रशा- सनकी बात उस पत्र-व्यवहारमें आ जाती है जो विधेयक पास होनेके तुरन्त बाद प्रकाशित किया गया था और स्वभावतः इस बारेमें ही अनिश्चितता थी । उचित प्रशासनका हमारा अर्थ सरकारके अर्थसे बिलकुल भिन्न हो सकता है और सरकार हमारे दृष्टिकोणको बराबर ठीक समझती रहे इसके लिए हर वक्त चौकस रहना जरूरी है।


१. गांधीजी मद्रास १७ अप्रैल १९१५ को पहुँचे थे, दक्षिण आफ्रिकासे आनेके बाद वे वहाँ पहली बार गये थे।

२. देखिए खण्ड १२, परिशिष्ट २५।

३. देखिए खण्ड १२ ।

४. देखिए खण्ड १२ ।