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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्रिस्टोफरके सम्बन्धमें आप मुझसे क्या चाहते हैं वह मेरे ध्यानमें है। मैं जो कुछ भी कर सका, करूंगा। मैं अभी कहीं नहीं टिक पाया हूँ। घूमते-फिरते अभी मद्रास आ पहुँचा हूँ। जैसे ही कहीं टिका, जो हो सका, करूंगा। मैं यह समझता हूँ कि यदि छात्रवृत्ति मिल गई तो वह भारतमें पढ़ेगा।

'इंडियन ओपिनियन' के बारेमें आपका सुझाव मिला । कार्यकर्त्ताओंकी कमी उसके क्षेत्रको संकुचित कर देती है। आप जानते ही हैं कि शक्ति-भर प्रयत्न करनेपर भी हमें निस्स्वार्थ कार्यकर्ता काफी नहीं मिल सके हैं। मुझे अब भी यही लगता है कि पत्रको किसी अन्य आधारपर नहीं चलाया जा सकता । सामर्थ्यके अनुसार रुपया देनेकी प्रणाली जारी करते ही इसकी समस्त उपयोगिता चली जायेगी। कुछ भी हो यह फीनिक्सका आदर्श नहीं है। आपको उपनिवेशमें उत्पन्न कुछ थोड़ेसे ऐसे युवक इकट्ठे करने चाहिए जो फलका विचार किये बिना सार्वजनिक कार्यमें लग जायें और आप 'इंडियन ओपिनियन' को इससे अधिक शक्तिशाली बना सकते हैं और तब आपका जैसा सुझाव है उस विशिष्ट अर्थमें आप उससे उपनिवेशों में उत्पन्न भारतीयोंकी सेवा कर सकते हैं।

स्वस्थ शरीरमें स्वस्थ मन होता है, यह कहावत आखिर एक सामान्य उक्ति ही है; किन्तु इसकी व्याख्या कई मर्यादाओंको ध्यानमें रखकर की जानी चाहिए। प्रसिद्ध सँडोको ही लीजिए। उसके शरीरको अत्यन्त स्वस्थ मानेंगे। किन्तु मुझे निश्चय नहीं है कि उसका मन भी स्वस्थ ही होगा । मेरी दृष्टिमें स्वस्थ शरीर वह है जो आत्माका अंकुश मानता है और उसकी सेवाके साधनके रूपमें सदा तैयार रहता है। मेरी रायमें ऐसे शरीर फुटबालके मैदानमें नहीं बनाये जाते। वे तो अनाजके खेतों और फार्मोमें बनाये जाते हैं। मेरा आपसे अनुरोध है कि आप इस सम्बन्ध में विचार करें और आपको मैंने जो कुछ कहा है उसकी सचाईके समर्थनमें असंख्य उदाहरण मिल जायेंगे । हमारे उपनिवेशोंमें उत्पन्न भारतीय फुटबाल और क्रिकेटके इस उन्मादके प्रवाहमें बह जाते हैं। कुछ विशेष स्थितियों में इन खेलोंका अपना महत्त्व हो सकता है। किन्तु मुझे निश्चय है कि हमारे लिए, जो अभी इतने गिरे हुए हैं, उनकी कोई गुंजाइश नहीं है। आप इस सीधी-सादी बातपर विचार क्यों नहीं करते कि मानव जातिका बहुत बड़ा भाग जिनके शरीर और मस्तिष्क शक्तिशाली हैं, सिर्फ किसान ही हैं, वे इन खेलोंको जानते तक नहीं और वे ही संसारमें सर्वश्रेष्ठ हैं। उनके बिना आप और मैं जी भी नहीं सकते। दूसरी ओर सुख-समृद्धिके लिए उनको हमारी कोई आवश्यकता नहीं है।

मेरी पत्नीका और मेरा स्वास्थ्य अच्छा है। हम लगातार यात्रा कर रहे हैं, यदि ऐसा न होता तो हमारा स्वास्थ्य और भी अच्छा होता। किन्तु भारतके पवित्र वातावरणका वही प्रभाव हुआ है जिसकी हमें आशा थी। चूँकि भारतके वातावरण में एक खास बात है, इसीलिए मैंने अपने उपनिवेशोंमें उत्पन्न मित्रोंको सानुरोध यह सुझाव दिया था कि वे भारत आना अपना कर्त्तव्य समझें; किन्तु वे उन भारतीयोंके रूपमें आयें जो विशुद्ध भारतीय जीवन बिताना चाहते हैं, अर्ध-यूरोपीय और अर्ध- भारतीय जीवन नहीं ।