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भाषण : गोखले-क्लब, मद्रासमें

मेरा खयाल है कि आपने जो भी प्रश्न पूछे थे, उन सबका उत्तर मैंने दे दिया है। फीनिक्सके लोगोंसे अच्छा और सहिष्णुताका व्यवहार कीजिए। वे भरसक प्रयत्न कर रहे हैं, अपना सर्वस्व दे रहे हैं और मातृभूमिकी सेवा करना चाहते हैं। इसमें उनकी सहायता कीजिए। जरूरत होने पर उनकी आलोचना भी कीजिए, किन्तु आपकी आलो- चनामें आश्रमके प्रति प्रेमका पुट रहे । कृपया पुराने मित्रोंको मेरा नमस्कार कहिएगा। मैं आपको और ब्रायनको न भूलूंगा जिनसे मुझे इतना प्रेम मिला है। आप जब कभी मुझे अपने लड़कोंको मेरी शर्तो पर देनेको तैयार हो जायेंगे, मैं उनका उत्तरदायित्व लेनेको तैयार रहूँगा। आप जितनी जल्दी निर्णय कर लें उतना ही अच्छा है, अन्यथा उनके लिए बहुत विलम्ब हो जायेगा ।

हृदयसे आपका,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६१२०) की फोटो-नकलसे ।

५३. भाषण : गोखले-क्लब, मद्रासमें

अप्रैल २०, १९१५

श्री गांधीने कल सायंकाल लगभग सवा घंटा भारत सेवक समाज (सवेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी) के भवनमें गोखले-क्लबके सदस्योंसे बातचीत करनेमें बिताया। नव- युवकोंका यह क्लब कोई छः मास पूर्व अनुभवी वृद्धजनोंके मार्गदर्शनमें सार्वजनिक प्रश्नों के अध्ययनके लिए संगठित किया गया था।

श्री गांधीने कहा कि मैंने फीनिक्स आश्रमकी योजना' मातृभूमिकी सेवाके लिए लोगोंको शिक्षित करने के उद्देश्य से बनाई है। आश्रममें चरित्र-निर्माणकी ओर विशेष ध्यान दिया जायेगा और उसमें कई देशी भाषाएँ सिखाई जायेंगी। मेरी रायमें, ब्रह्मचर्यका पालन समस्त राष्ट्रीय सेवकोंके लिए आवश्यक है और यह शर्त आश्रममें प्रवेश पाने के लिए आवश्यक होगी। आश्रममें प्रत्येक व्यक्ति के लिए शारीरिक श्रम अनिवार्य होगा। सबको उसकी शिक्षा भी दी जायेगी, विशेषकर खेती-सम्बन्धी कामों की। आश्रम में विवाहित और अविवाहित स्त्री और पुरुष दोनों ही प्रवेश पा सकते हैं। एक प्रश्नकर्त्ताने पूछा कि क्या वे ब्रह्मचर्य और अपरिग्रहको ऐसे आदर्श मानते हैं जिसका सारा देश अनुसरण करे। श्री गांधीने कहा : मैं निस्संकोच देशसे इनका अनु- सरण करनेके लिए कहता हूँ; किन्तु मैं यह भी मानता हूँ कि समस्त राष्ट्रके लिए उनपर नैतिक रूपसे आचरण करना असम्भव है। जीवनमें आचरण के लिए मैं दो सिद्धांतोंको सर्वोपरि मानता हूँ---सत्य-प्रेम और अहिंसा । अहिंसाका अर्थ है किसी भी प्राणीको


१. देखिए “भेंट : मद्रास मेल के प्रतिनिधिको”, २२-४-१९१५ ।