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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दक्षिण आफ्रिकावासी देशभाई फँसे थे, एक-दो बार जेल न हो आया हो। आपने कहा है कि इन महान् पुरुषों और स्त्रियोंको मैंने प्रेरणा दी, पर मैं यह बात नहीं मान सकता; बल्कि सच पूछिए तो किसी पुरस्कारकी आशा किये बिना, आस्थाके साथ काम करने- वाले ये सीधे-सादे लोग ही मुझे प्रेरित करते रहे। इन्होंने ही मुझे अपने आदर्शसे हटने नहीं दिया। और मैंने जो-कुछ भी किया वह मुझे इनके महान् बलिदान, दृढ़ विश्वास और ईश्वरके प्रति गहरी आस्थासे विवश होकर करना पड़ा (हर्ष-ध्वनि) । यह मेरा और मेरी पत्नीका दुर्भाग्य है कि हमें ऐसी परिस्थितिमें काम करना पड़ा जिससे हमें अधिक प्रसिद्धि मिलती रही और हम लोग जो थोड़ा-सा काम कर सके उसे आप लोगोंने बहुत ज्यादा बढ़ा दिया है ('नहीं, नहीं' की आवाजें) । यदि हम जैसे सांसारिक प्राणियों के बारेमें, जो उसी मिट्टीसे बने हैं जिससे आप बने हैं, आपको यह खयाल हो कि हम चाहे भारत में हों चाहे दक्षिण आफ्रिकामें, पारस्परिक सहयोगके बिना कुछ भी कर सकते हैं तो आप और हम दोनों ही, कोई काम न कर पायेंगे । और हमारे सारे प्रयत्न निष्फल होंगे। मैं यह कदापि नहीं मान सकता कि हमने प्रेरणा दी। प्रेरणा तो उन लोगोंने दी। हम तो केवल अपनेको अधिकारी माननेवाले वर्ग और उस वर्गके बीच जिसे कष्ट-निवारणकी इतनी आवश्यकता थी -दुभाषिएका काम करते रहे। हम उन दोनों पक्षोंके बीच एक कड़ीके सिवा और कुछ नहीं थे। चूँकि मेरे माता-पिताने मुझे शिक्षा दी थी, मेरा यह कर्त्तव्य था कि हमपर जो बीत रही थी उसका स्वरूप इन सीधे-सादे लोगोंके सामने रखूं; और वे लोग परीक्षामें पूरे उतरे। उन्होंने भारतमें जन्म लेनेके महत्त्वको समझा, धार्मिक बलकी सामर्थ्यको पहचाना, और उन्होंने ही हमें प्रेरणा दी और अब भी हमें प्रेरणा उन्हींसे लेनी है। उन्होंने अपना कर्त्तव्य पूरा किया और हम सबके लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिये। वे तीनों तो सदाके लिए चले गये पर हम जीवित हैं; और कौन कह सकता है कि भविष्यमें किसी नये संकटका सामना होने पर हम कर्त्तव्य-पथसे विचलित न हो जायेंगे या हमारा मन ही न बदल जायेगा । उत्तर प्रदेशके एक पचहत्तर वर्षीय वृद्ध हरबर्तासिंहने भी लोगोंका साथ दिया और दक्षिण आफ्रिकाकी जेलमें प्राण त्यागे । आप हमारा जो सम्मान करना चाहते हैं उसके अधिकारी तो वे हैं। बिना किसी विचारके स्नेहवश आपने जो हमारी प्रशंसाके पुल बाँध दिये हैं उनके अधिकारी यही युवक हैं। इस संघर्ष में भाग लेनेवाले सिर्फ हिन्दू ही नहीं पर मुसलमान, पारसी, ईसाई, सभी थे। भारतके प्रायः हर कोनेके लोग इस संघर्षमें शामिल हुए। उन्होंने हम सबके सामने जो संकट था उसे पहचाना, भारतीय होनेके अपने सौभाग्यको पहचाना; और यह उन्हींका दम था कि उन्होंने शस्त्रबलका सामना आत्मबलसे किया (जोरकी तालियाँ)।

[अंग्रेजीसे]

हिन्दू, २१-४-१९१५


१. देखिए “भाषण : बम्बईके सार्वजनिक स्वागत समारोहमें ", १२-१-१९१५ ।