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५५. भेंट : 'मद्रास मेल 'के प्रतिनिधिको

अप्रैल २२, १९१५

कल इस पत्रके एक प्रतिनिधिने श्री गांधीसे भेंट की। दोनोंमें काफी देर तक तात्कालिक महत्वके बहुतसे मामलोंपर दिलचस्प बातचीत हुई। जिसे हम संक्षिप्त रूपमें नीचे उद्धृत कर रहे हैं।

क्योंकि दक्षिण आफ्रिकामें आपके कठिन परिश्रमके फलस्वरूप भारतीयोंकी स्थिति- का सन्तोषजनक हल निकल आया है, श्री गांधी, क्या आप यह बतानेकी कृपा करेंगे कि अब आपका कार्यक्रम क्या होगा?

इस वर्षके लिए जिसके तीन मास बीत भी चुके हैं, मुझे श्री गोखलेने यह निर्देश दिया था कि मैं देशका दौरा करूँ, लोगों और संस्थाओंको समझू और कोई वास्तविक कार्य आरम्भ करनेसे पूर्व अपनी राय कायम करूँ। और अपने इस निरीक्षण कालमें मुझे सार्वजनिक सभाओं में विवादास्पद विषयोंपर भाषण भी नहीं देने हैं। वर्ष बीत जानेपर मुझे निश्चित रूपसे मालूम हो जायेगा कि ऐसे प्रश्न कौन-कौनसे हैं जिनपर मैं ध्यान दे सकूँगा। किन्तु मेरे एक कामके बारेमें श्री गोखले और मैं दोनों सहमत थे, वह है उस संस्थाको जारी रखना, जिसे वे फीनिक्स आश्रमके नामसे पुकारते थे। यह नाम उन्होंने इसलिए दिया क्योंकि वे कुछ हद तक श्री कैलेनबैकके टॉल्स्टॉय फार्ममें और नेटालके उत्तरी तटपर स्थित एक छोटेसे स्थान फीनिक्समें इस प्रयोगको कार्यरूपमें चलते हुए देखकर आये थे। मैं आपको इस समय इसी प्रयोगके विषयमें बताने जा रहा हूँ । इस आश्रममें युवकों और स्त्रियों एवं बच्चोंको भी, मातृभूमिकी दीर्घकालीन सेवाके लिए शिक्षित किया जाता है। इस संस्थाकी यह विशेषता है कि इसमें प्रत्येक व्यक्तिके लिए किसी-न-किसी प्रकारका शारीरिक श्रम करना आवश्यक है। और चूंकि खेतीका काम सर्वोत्तम शारीरिक श्रम है, इसलिए प्रत्येक व्यक्तिसे दिनमें कुछ समयतक खेतमें काम करनेकी अपेक्षा की जाती है। हाथ-करघेका उद्योग आरम्भ करनेका भी विचार है। इस संस्थामें जो लोग हैं वे देशकी मुख्य भाषाएँ भी सीखेंगे, जिससे वे देशके विभिन्न भागोंमें लोगोंसे बिना किसी कठिनाईके मिल-जुल सकें। आपसी बातचीत या पत्र-व्यवहारमें देशी भाषाओंका ही प्रयोग किया जायेगा । जहाँतक हो सकेगा अंग्रेजीका प्रयोग सिर्फ अंग्रेजोंसे और उन लोगोंसे जो भारतकी किसी भी मुख्य भाषाको नहीं समझते, व्यवहार करनेके लिए ही किया जायेगा। संस्थामें ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह व्रतोंका पूर्ण पालन किया जायेगा; मुझे लगता है कि यदि यह प्रयोग सफल हुआ और काफी युवक आगे आये तो हम जिन प्रस्तुत समस्याओंसे दुविधा और चिन्तामें पड़े हैं, उनमें से कितनी ही अपने-आप हल हो जायेंगी।

१. यह इस शीर्षकसे प्रकाशित हुआ था : “श्री मो० क० गांधी- --भारतमें उनका भावी कार्यक्रम । ”