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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आप संस्थाम कामका कौन-सा तरीका अपनाना चाहते हैं और देश-सेवा किस तरहकी होगी, क्या आप मुझे इस बारेमें कुछ बतायेंगे?

सेवाका स्वरूप क्या होगा, मेरे लिए यह बताना सम्भव नहीं है। यह बहुत कुछ, इस परीक्षण कालमें मेरे देखने-सोचनेका क्या परिणाम होगा, उसपर निर्भर करता है। साथ ही आप यह आसानीसे देख सकते हैं कि मैंने शिक्षणकी जो रूप-रेखा बताई है दरअसल उसमें इस सेवाका महत्त्वपूर्ण भाग आ जाता है। इस सम्बन्धमें जिन विविध दशाओं में काम किया जा सकता है उसकी कल्पना कोई भी आसानीसे कर सकता है। किन्तु मैं और मेरे साथी किन सार्वजनिक कार्योंकी ओर ध्यान देंगे, इस सम्बन्ध में मैं लोगोंसे चर्चा नहीं करना चाहता; क्योंकि जैसा मैंने पहले बताया है मैं श्री गोखलेको वचन दे चुका हूँ कि जबतक मैं यहाँकी समस्याओंको समझ न लूं तबतक किसी निश्चित कार्यक्रमसे न बंधूंगा । और अब चूंकि मेरी -नौकाका खेवनहार चला गया है और मुझे अब सब-कुछ अपने बलपर ही करना है, यह और भी आवश्यक हो गया है। मैं अत्यन्त सावधानीसे काम करना चाहता हूँ और जहाँतक सम्भव है वहाँतक आजके समस्त ज्वलन्त प्रश्नोंपर निष्पक्ष रूपसे विचार करना चाहता हूँ।

क्या आपके लिए श्री गोखलेने यह परीक्षण काल इस कारण रखा, क्योंकि आप इतने वर्षोंतक भारतसे बाहर रहे हैं?

हाँ, उनका सबसे जोरदार तर्क यही था । चूँकि मैं २८ वर्षसे अधिक समय तक भारतसे बाहर रहा और मेरी विचारधारा भारतके बाहर ही ढली इसलिए उन्होंने मेरे लिए वर्तमान स्थितियोंसे व्यक्तिगत सम्पर्क द्वारा उसे सुधारना नितान्त आवश्यक समझा।

आप पिछली बार जब यहाँ आये थे क्या आपको उसके बादसे भारतके हालात में कोई स्पष्ट परिवर्तन दिखाई देता है?

जहाँतक में देख पाया हूँ और जहाँतक मैं इस योग्य हूँ कि १९०२ में जब में भारतमें थोड़े दिनोंके लिए आया था, उन दिनों देखी हुई स्थितिकी तुलना आजकी स्थिति- से कर सकूँ, तो मुझे लगता है कि युवकोंमें मातृभूमिकी सेवा करनेकी अधिक उत्कण्ठा है और जिन कामोंके करनेमें कुछ आत्मत्याग करना पड़े, ऐसे कामोंको करनेकी भी तीव्र इच्छा है।

हमारे प्रतिनिधिन इसके बाद दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय प्रश्न और अन्य विविध विषयोंके साथ भारतके राजनैतिक आन्दोलनका उल्लेख किया, तो श्री गांधीने कहा कि मैं सरकारसे रियायतें प्राप्त करनेके लिए आन्दोलन करनेको उतना महत्त्व नहीं देता,जितना देशके लोगोंके नैतिक, सामाजिक और आर्थिक पुनरुत्थानके लिए काम करनेको;क्योंकि मेरी राय यह है कि यदि लोग एक बार अपने चरित्र और सामर्थ्यसे योग्य बन जायेंगे तो उसके बाद उन्हें विशेषाधिकार अपने-आप मिल जायेंगे। वस्तुतः लोगोंको

१. यहाँ २२ वर्ष होना चाहिए था; इंग्लैंडवासको मिलाकर भी २८ वर्ष ठीक संख्या नहीं है । वे अप्रैल १८९३ से जनवरी १९१५ तक दक्षिण आफ्रिका में रहे और १८८८ से १८९१ तक इंग्लैंडमें ।