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५८. भाषण : मद्रास मुस्लिम लीगके स्वागत समारोहमें

अप्रैल २४, १९१५

शनिवारको सायंकाल मुस्लिम लीगने लॉली हॉल, माउंट रोडमें श्री और श्रीमती गांधीको भोज दिया •। भोजके बाद श्री याकूब हसनने छोटा-सा भाषण दिया। उन्होंने मुसलमानोंकी ओरसे वचन दिया कि वे भारतके हितका जो भी काम हाथमें लेंगे उसमें उनका समाज सहयोग देगा।

श्री गांधीन संक्षिप्त उत्तर देते हुए कहा कि आपने हमारे प्रति जो कृपा दिखाई उसके लिए मैं अपनी पत्नीकी ओरसे और अपनी ओरसे आपको धन्यवाद देता हूँ। आपने यह वचन दिया है कि मैं देशकी ओरसे जो भी काम करूंगा उसमें बिना किसी शर्तके आप मुझे सहयोग देंगे। वचन देना एक बात है और उसे निभाना दूसरी बात। उन्होंने हलकी-सी चेतावनी देते हुए आगे कहा : मैं कर्त्तव्योंके पालनकी माँग करनेमें अत्यन्त आग्रही हूँ, विशेष रूपसे तब जब वे स्वेच्छासे हाथमें लिये गये हों। और जब मैं आपको कर्तव्योंके पालनके लिए कहूँगा तो सम्भव है आपको बहुत परेशानी मालूम पड़े। इस सम्बन्ध में मुझे दक्षिण आफ्रिकामें मुसलमानोंकी सेवाके दो उदाहरण याद आ रहे हैं। उनमें से एक उदाहरण एक व्यापारी अहमद मुहम्मद काछलियाका है। मैंने उनसे अधिक अविचल प्रकृतिका दूसरा मनुष्य नहीं देखा। वे देशकी खातिर कई बार जेलमें गये और उनके यूरोपीय साहूकारोंने उनको राजनैतिक कारणोंसे दिवालिया बना दिया। किन्तु उन्होंने उनकी देनदारी पाई-पाई चुका दी। दूसरा उदाहरण है अब्दुल साहब एम० मुआज्जिनका । उन्होंने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सेवा की। उन्होंने भी देशके निमित्त अपने सर्वस्वका त्याग कर दिया और बिलकुल गरीब हो गये । वे अब अपने परिवार सहित नेटालमें फीनिक्स आश्रम हैं। अन्तमें मैं आपको फिर आपके वचनकी याद दिलाता हूँ।

रविवारको दोपहर बाद ढाई बजे आबिदा ऐक्य आनन्द समाजकी महिलाओंकी ओरसे रामस्वामी स्ट्रीट, मनाडीमें संस्थाके अहातेमें भोज दिया गया। समारोहमें मान- पत्र भी भेंट किया गया।

[अंग्रेजीसे]

हिन्दू, २६-४-१९१५

१. मन्त्री, भारतीय दक्षिण आफ्रिकी लीग।

२. वे १९०८में ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्ष बनाये गये । इन्होंने दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंके निमित्त अपने सर्वस्वकी आहुति दे दी । इनका स्वर्गवास १९१८में हुआ; देखिए खण्ड ११, पृष्ठ १३, पाद-टिप्पणी ३ ।