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५९. भाषण : मद्रासके कानून-पेशा लोगों द्वारा
दिये गये भोजमें

अप्रैल २४, १९१५

पिछले शनिवारको मद्रास वकील-संघ (मद्रास बार असोशिएशन) के तत्त्वावधान में आयोजित कानून-पेशा लोगोंका वार्षिक भोज-समारोह सम्पन्न हुआ। यह इस ढंगका तीसरा समारोह था । यह आयोजन पीपल्स पार्क, मद्रासके मूअर मण्डपसे लगे खुले मैदान- में किया गया था। संध्याका समय था और उस विस्तृत मैदानमें शुभ्र चाँदनी छिटकी हुई थी। एडवोकेट जनरल माननीय श्री एफ० एच० एम० कॉरबेट आयोजनकी अध्य- क्षता कर रहे थे। ... एक बैरिस्टरके नाते श्री गांधीको भी, जो इन दिनों मद्रासमें हैं, आमन्त्रित किया गया था। उन्हें सम्मानपूर्वक माननीय एडवोकेट-जनरलकी बाईं ओर बैठाया गया था।... अध्यक्ष श्री गांधीसे "ब्रिटिश साम्राज्य" के लिए शुभ- कामनाका आपानक (टोस्ट) प्रस्तावित करनेका अनुरोध किया। . . . शुभ-कामनाका आपानक प्रस्तावित करते हुए श्री गांधीने कहा :

जब विद्वान एडवोकेट-जनरल महोदयने मेरे पास आकर मुझसे शुभकामनाका आपानक प्रस्तावित करनेको कहा तो मैं कुछ अचम्भेमें पड़ गया । मेरा खयाल है यह उनके ध्यानमें नहीं आया; लेकिन मैं आप सबके सामने इसे स्वीकार करता हूँ। मुझे लगा था कि चूंकि मैं किसी समय उसी पेशेका आदमी था जो आप लोगोंका या आपमें से अधिकांशका पेशा है, और चूंकि मैं इस समय संयोगसे मद्रासमें उपस्थित हूँ, इसलिए मुझे आयोजनमें शामिल होनेका निमन्त्रण दे दिया गया है। और मुझे यह भी लगा था कि यहाँ मुझे एक मूक दर्शकके रूपमें रहने दिया जायेगा। किन्तु, जब उन्होंने इस बातका उल्लेख किया तो [ मुझे आश्चर्य हुआ किन्तु] मैंने नि:संकोच कह दिया कि "हाँ, मैं प्रसन्नतापूर्वक यह शुभकामनाका आपानक प्रस्तावित करूंगा।" भारतके मेरे तीन महीनेके दौरेमें और दक्षिण आफ्रिकामें भी लोग मुझसे अकसर पूछते रहे हैं कि आधुनिक सभ्यता- का दृढ़ विरोधी और जाना-माना देशभक्त होते हुए भी में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति, जिसका भारत इतना बड़ा अंग है, वफादार कैसे हो सकता हूँ, और मेरे लिए इस बातको संगत मानना कैसे सम्भव है कि भारत और इंग्लैंड पारस्परिक लाभके लिए साथ- साथ काम कर सकते हैं। आजकी सन्ध्याके इस महान् और महत्त्वपूर्ण सम्मेलनमें ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति पुनः अपनी वफादारीकी घोषणा करते हुए मुझे अत्यन्त हर्ष हो रहा है; और ब्रिटिश साम्राज्यके प्रति मेरी यह वफादारी बहुत ही स्वार्थपूर्ण आधारपर खड़ी है। एक सत्याग्रहीके रूपमें मैंने यह देखा कि ब्रिटिश साम्राज्यके अन्तर्गत में जितनी आजादीसे काम कर सकता हूँ उतनी आजादीसे अन्यथा नहीं कर सकता। वैसे तो मेरी समझमें परिस्थितियाँ चाहे कैसी भी क्यों न हों, सत्याग्रहीको सत्याग्रहके बारेमें अपना दावा सिद्ध करके दिखाना ही चाहिए; और मैंने [ यह सिद्ध करनेके प्रयासमें] पाया कि ब्रिटिश