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भाषण : सोशल सर्विस लीग, मद्रासकी सभामें

साम्राज्यके कुछ आदर्श हैं और उनसे मुझे प्रेम हो गया है (हष-ध्वनि) । इन आदर्शोंमें से एक यह है कि प्रत्येक प्रजाजनको अपनी शक्ति और प्रयासोंका अधिकसे-अधिक स्वतन्त्रताके साथ उपयोग करनेका पूरा अवसर प्राप्त रहे, और वह जो कुछ भी सोचता है, अपनी अन्तरात्माके आधारपर सोच सके। मेरा खयाल है, यह बात जितनी ब्रिटिश साम्राज्यपर लागू होती है उतनी और किसीके साथ नहीं (हर्ष-ध्वनि) । शायद आप लोग जानते होंगे, और मेरा भी अनुभव यह है कि सर्वोत्तम सरकार वही है जो कमसे कम शासन करे; मैंने देखा है कि ब्रिटिश साम्राज्यमें मेरे लिए कमसे-कम शासित होना सम्भव है। और यही कारण है कि मैं ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति वफादार हूँ (तीव्र हर्ष-ध्वनि) । और आपसे इस साम्राज्यकी समृद्धि की कामना करते हुए आपानक लेनेका अनुरोध करके अपना भाषण समाप्त करनेसे पूर्व क्या मैं आपको दूर-देश दक्षिण आफ्रिकामें इस संघर्षके दौरान घटित एक विशिष्ट घटनाका स्मरण दिला सकता हूँ ? ब्रिटिश साम्राज्यकी एक सेनाके विश्वस्त कमांडर जनरल बेयर्सने साम्राज्यके विरुद्ध खुल्लम- खुल्ला विद्रोह कर दिया। और फिर भी उन्हें देखते ही गोलीसे नहीं उड़ा दिया गया । - यह बात इस साम्राज्यमें और केवल इसी साम्राज्यमें सम्भव थी। जनरल स्मट्सने एक स्मरणीय पत्र में उन्हें लिखा कि किसी समय वे स्वयं भी विद्रोही हो गये थे। उन्होंने बेयर्सको लिखा कि तब भी मैं अपनी जान बचा सका; और यह ब्रिटिश साम्राज्यके अन्तर्गत ही सम्भव है। इन्हीं कारणोंसे में ब्रिटिश साम्राज्यके प्रति वफादार हूँ। (तीव्र हर्ष-ध्वनि )।

आपानकके प्रस्तावका लोगोंने बड़े उत्साहसे स्वागत किया।

[अंग्रेजीसे]

हिन्दू, २६-४-१९१५

६०. भाषण : सोशल सर्विस लीग, मद्रासको सभामें

अप्रैल २५, १९१५

समाज सेवा संघ (सोशल सर्विस लीग) के सदस्योंने रविवार (२५-४-१९१५) को ३-३० बजे शामको रानडे भवनमें श्री गांधीके स्वागतार्थ एक सभा की। इसमें श्री एस० श्रीनिवास अय्यंगार, राव बहादुर टी० विजयराघवाचारियर, माननीय श्री वी० एस० श्रीनिवास शास्त्री, श्री वी० टी० कृष्णमाचारी, श्री जी० ए० नटेसन और अन्य लोग उपस्थित थे।

उपस्थित लोगोंको गांधीजीका परिचय श्री विजयराघवाचारियरने दिया। उसके बाद गांधीजी बोले। उन्होंने कहा : लीग जो काम कर रही है मैंने उसका कुछ-कुछ परिचय अभी प्राप्त किया है। समाज-सेवाका कार्य अत्यन्त विनम्रता और आत्म-त्यागकी भावनासे किया जाना चाहिए। इस सम्बन्धमें हम श्री गोखलेका उदाहरण लें। उनका कहना है कि जितने भी सच्चे सार्वजनिक कार्यकर्ता हैं, उनके लिए उनका काम ही