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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पुरस्कार है। यदि समाज-सेवी कार्यकर्त्ताके कार्यको मान्यता न मिले या उसकी कद्र न हो तो उसे इससे रुक न जाना चाहिए; उसे अपना कार्य परिश्रमपूर्वक और पूरे मनसे ध्यान देकर करते जाना चाहिए। कोई समाज-सेवी कार्यकर्ता जिस कामको भी करनेका प्रयत्न कर रहा हो उसे अपना प्रयास तबतक बन्द नहीं करना चाहिए जब- तक वह उसे सफलतापूर्वक पूरा न कर ले। मैं समाज-सेवाका कार्य अधूरे मनसे करनेके विरुद्ध हूँ। ऐसा कार्य करनेसे उसे बिलकुल न करना अच्छा है। एक कार्यकर्त्ताने पूछा कि लीगके सदस्य प्रति सप्ताह कुछ सीमित समय ही दे सकते हैं। उनको आप क्या सलाह देते हैं ? गांधीजीने कहा कि आप जो थोड़ा-सा समय बचा सकते हैं उसमें आपको पूरे ध्यानसे काम करना चाहिए। यदि ठीक तरहके सामाजिक कार्य करनेवाले लोग मिल जायेंगे तो आशा की जा सकती है कि सफलता मिलेगी ही।

मेरे पास जो थोड़ा समय है उसमें मैं दलित वर्गोंको नैतिक और धार्मिक निर्देश देनके प्रश्नपर विचार नहीं कर सकता। किन्तु मैं पूरी तरह विश्वास करता हूँ कि यह एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। आप इसे ठीक-ठीक समझ लेंगे तभी आप उन लोगों के हृदय में प्रवेश कर सकेंगे जिनमें आप काम करते हैं। रात्रि-शालाओं में पंचम वर्णके बालकोंको और ऊँची जातियोंके बालकोंको साथ-साथ बिठाया जाये या नहीं, इस सम्ब- न्धमें प्रश्न करने पर उन्होंने कहा कि कमसे-कम रात्रि-शालाओंमें ऐसा करनेमें कोई बुराई नहीं है, क्योंकि वहाँ पढ़ाने के लिए कम-ही समय होता है और इसका किसी तरहका बुरा प्रभाव न तो पंचम बालकोंपर पड़ेगा और न ऊँची जातियोंके बालकों पर । सामान्यतः प्रारम्भिक शिक्षाके बारेमें और प्रारम्भिक शिक्षाको असीमित रूपसे बढ़ानेकी नीतिके बारेमें उन्होंने कहा : इसमें कोई सन्देह नहीं कि जन-साधारणमें स्वच्छता और सफाई बढ़ाने की दिशामें इससे बहुत-कुछ लाभ हुआ है और सफाई बहुत वांछ- नीय वस्तु है। किन्तु इसके लिए यह अनिवार्य नहीं है। जिन लोगोंको लिखने-पढ़ने और हिसाब करनेका ज्ञान नहीं है, वे भी सफाईके सिद्धान्तोंको समझ सकते हैं और उनके लिए सुधारकी जो भी उचित योजना बनाई जाये उसमें सहयोग दे सकते हैं। इस दिशामें तेजीसे काम करने की आवश्यकता है। उनके दिमागमें यह खयाल बिठा देना कि काम या शारीरिक श्रमसे अप्रतिष्ठा होती है..।' मुझे उस मोची- में कोई बुराई दिखाई नहीं देती जिसने जीवनभर अपना धन्धा करते हुए एम० ए० की उपाधि ली है। शराबखोरीके सम्बन्धमें उन्होंने कहा कि यह बुराई ऐसी है जिसका उन्मूलन करना अत्यन्त कठिन है। इस कार्यमें तो केवल कोई महान् धार्मिक कार्यकर्ता ही सफल हो सकता है। इस सम्बन्ध में उन्होंने पूनाके एक समाज-सेवी कार्यकर्ताका अनुभव बताते हुए एक व्यावहारिक उदाहरण दिया।


१. अतिशूद्र बहिष्कृत ।

२ और ३. यहाँ मूलमें कागज फटा हुआ है।