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भाषण : आर्य वैश्य महासभा, मद्रासके स्वागत समारोहमें

श्री गांधीने बातचीत समाप्त करते हुए कहा कि समाज-सेवाके लिए रुपया नहीं, मनुष्य चाहिए और वे मनुष्य ठीक तरहके हों, उनकी भावनाएँ ठीक हों, उनमें अटूट प्रेम और औदार्य हो, एवं उनका अपने कार्यमें पूर्ण विश्वास हो । यदि आपके पास ऐसे मनुष्य हों तो रुपया अपने-आप बिना माँगे भी आ जायेगा । बहुत-कुछ सामाजिक कार्य रुपयेके बिना ही किया जा सकता है। जन-साधारण जिन भावनाओंसे प्रेरित होते हैं शिक्षित व्यक्तिका उनको ठीक-ठीक समझना और उनका मूल्यांकन करना तबतक बहुत कठिन है जबतक वह स्वयं थोड़ा पीछे हटकर उन्हें समझनेका प्रयत्न न करे । और यदि कोई व्यक्ति, चाहे वह धनी भी हो, यदि स्वयं कामसे प्रेरणा नहीं लेता, बल्कि व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षाको भावनासे काम करता है तो उसके लिए कोई सामा- जिक काम करना असम्भव है। उस मनुष्यके लिए कोई ठोस समाज-सेवा करना ऊँटका सुईके छेदमेंसे निकलनेसे भी अधिक कठिन है।'

श्री गांधीको धन्यवाद देनेके बाद सभा ४-३० बजे सायं समाप्त हो गई।

[अंग्रेजीसे]

हिन्दू, २७-४-१९१५


६१. भाषण : आर्य वैश्य महासभा, मद्रासके
स्वागत समारोहमें

अप्रैल २५, १९१५

श्री गांधीने स्वागत भाषणका उत्तर देते हुए कहा : आपने मेरा और मेरी पत्नीका जो सम्मान किया है उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। हमें दक्षिण आफ्रिकामें जो सफलता मिली है उसका श्रेय उन अन्य भारतीयोंको दिया जाना चाहिए जो दक्षिण आफ्रिकाके अधिवासी बन गये हैं। दक्षिण आफ्रिकामें जो-कुछ किया जा रहा है उस सबको बतानेके लिए यह समय उपयुक्त नहीं है। दक्षिण आफ्रिकामें जो भार- तीय हैं वे छोटे किसान, फेरीवाले और छोटे व्यापारी हैं । झगड़ेकी जड़ यह है कि इनकी वहाँ आबाद यूरोपीय लोगोंसे जबर्दस्त स्पर्धा है। कई दूसरी बातें भी हैं जिनके कारण संघर्ष करना पड़ा; किन्तु मुख्य कारण स्पर्धा ही है । यद्यपि फिलहाल समझौता हो गया है, किन्तु फिर भी हम यह मान सकते हैं कि उनके मनोंमें कुछ-न-कुछ चिढ़ तो बनी ही है; और जबतक यह स्पर्धा है तबतक बनी रहेगी। वहाँ हमारे जो लोग

१. अंग्रेजी मुहाविरेका अविकल अनुवाद।

२. गोविन्दप्पा नामक स्ट्रीटमें वसंत मंडपम में ६ बजे सायं श्री सल्ला गुरुस्वामी चेट्टीने छोटा-सा स्वागत भाषण दिया था।

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