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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हैं वे विद्वान् या विश्वविद्यालयों में पढ़े हुए लोग नहीं हैं; किन्तु वे ऐसे लोग हैं जिनके कारण राष्ट्रोंमें भारतको ऊँचा स्थान मिल सकता है।

[ अंग्रेजीसे ]

हिन्दू, २६-४-१९१५

६२. पत्र : नारणदास गांधीको

जॉर्जटाउन

मद्रास

वैशाख सुदी ११[ अप्रैल २५, १९१५]

चि० नारणदास,

तुम्हारा पत्र मिल गया है। मैं यहाँसे ७ तारीखको रवाना होकर उस ओर आऊँगा।

मगनलाल और अन्य सब गुरुकुल कांगड़ी, हरद्वारमें हैं। सभीको उपयुक्त दर्जोंमें प्रवेश मिल गया है।

हरिलालके पत्रके सम्बन्ध में तुम्हारा अनुमान ठीक है। हरिलालने जो-कुछ किया है। उसकी जोड़का उदाहरण मिलना मुश्किल है। जब कोई लड़का ऐसा लिखता है तब सामान्यतः बाप और बेटेमें झगड़ा ही होता है; किन्तु इस मामलेमें ऐसा होनेकी गुंजाइश भी नहीं है। हरिलालका मन अब शान्त हो गया है, यह उसने बताया है और पत्र लिखनेपर पश्चात्ताप किया है। पत्र नासमझीसे भरा हुआ है और मुझे ऐसा लगता है कि जब उसे अनुभव होगा तब अधिक समझ सकेगा।

बोलपुर गर्मीमें बहुत गर्म रहता है। इसलिए रामदास बीमार हो गया। उसका भोजन दूसरोंकी अपेक्षा कम गर्म था । इन दिनों यहाँके लोग गर्मीके बारेमें शिकायत करते रहते हैं। मुझे तो यहाँ गर्मी मालूम ही नहीं पड़ती।

मैंने दो व्रत लिये हैं। उनके सम्बन्धमें तुम्हें नहीं लिखा । व्रत हैं, इस देशमें कभी सूर्यास्तके बाद भोजन न करना और एक दिनमें पाँचसे ज्यादा चीजें न खाना । दूसरा व्रत कड़ा है और किसी दिन इससे नुकसान भी हो सकता है, फिर भी वह लेने योग्य तो था; और मन उसको लेनेपर अधिक संयत हो गया है। हम दोनोंका स्वास्थ्य अच्छा रहता है। रेवाशंकर भाईके बड़े भाई अपने क्रोधपर विजय पानेके लिए यहाँ आ गये हैं और मेरे साथ रहते हैं। वे भी फलाहार करते हैं। हमारे साथियोंमें से मेरे साथ कोई नहीं है। मैं बम्बई में लगभग चार दिन रहकर अहमदाबाद चला जाऊँगा।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५६६९) से। सौजन्य : नारणदास गांधी

१. गांधीजी १५ अप्रैलको हरद्वार और दिल्लीसे आये थे । इस वर्षमें दो वैशाख पड़े थे।

२. ये उन्होंने ९ अप्रैलको हरद्वार में लिये थे; देखिए “ डायरी : १९१५ ” ।