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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

बार दवाइयाँ अनीतिकी पोषक होती हैं। ऐसे विज्ञापन धार्मिक पत्रोंमें भी देखनेमें आते हैं। यह परिपाटी पश्चिमसे ही आई है। चाहे कितने भी प्रयत्न क्यों न करने पड़ें लेकिन हमें विज्ञापनोंके इस रिवाजको खत्म करना चाहिए अथवा विज्ञापनोंमें बहुत सुधार करने चाहिए। प्रत्येक समाचारपत्रका कर्त्तव्य है कि वह विज्ञापनोंपर अंकुश रखे।

अन्तिम प्रश्न विचार करने योग्य यह है कि जहाँ "राजद्रोहात्मक लेख आदि सम्बन्धी कानून" और "भारत सुरक्षा कानून" जैसे कानून प्रचलित हों वहाँ समाचारपत्रोंको क्या करना चाहिए? हमारे समाचारपत्रोंमें अनेक बार दोअर्थी भाषा देखनेमें आती है। कुछ-एक पत्रोंने तो इस पद्धतिको शास्त्रका रूप दे दिया है। मेरी सम्मतिमें इससे देशको नुकसान पहुँचता है। लोगोंमें कायरताका प्रसार होता है और दोअर्थी वचनोंको बोलनेकी आदत पड़ती है। इससे भाषाका स्वभाव ही बदल जाता है और वह विचार प्रकट करनेके स्थानपर उन्हें छिपानेका साधन बन जाती है। इससे प्रजाका [चारित्रिक] विकास नहीं होता, यह मैं विशेष रूपसे मानता हूँ। हमारे मनमें जो हो वही बोलनेकी आदत प्रजामें तथा व्यक्तियोंमें पड़नी चाहिए। यह शिक्षा समाचारपत्रों द्वारा अच्छी तरह मिल सकती है। अतएव जिन्हें उपर्युक्त कानूनोंसे बचकर कार्य करना हो उनके लिए यही श्रेयस्कर है कि समाचारपत्रको प्रकाशित ही न करें। अथवा इन कानूनोंकी परवाह किये बिना मनमें जो विचार आये उन्हें निडर होकर, [लेकिन] विनयपूर्वक प्रकट कर दें और उसका जो भी परिणाम हो उसे सहन करें। न्यायमूर्ति स्टीफनने कहीं यह विचार प्रकट किया है कि जिस व्यक्तिने कभी द्रोहकी कल्पना नहीं की है उसकी भाषामें द्रोह हरगिज नहीं हो सकता। और यदि मनमें द्रोह हो तो उसे निधड़क होकर व्यक्त करना चाहिए। अगर ऐसा करनेकी हिम्मत न हो तो पत्रका प्रकाशन बन्द कर देना चाहिए। इसीमें सबका कल्याण है।

[गुजरातीसे]
महात्मा गांधीनी विचारसृष्टि

२५. सन्देश : गुजराती हिन्दू स्त्री-मण्डलको[१]

[नवम्बर १४, १९१७ या उससे पूर्व]

जिन बहनोंके पास यह लेख पहुँचेगा वे कम-ज्यादा शिक्षित तो होंगी ही, इसलिए मैं एक विषयपर विचार करना चाहता हूँ। शिक्षित स्त्रीवर्गको अपनी अशिक्षित बहनोंके लिए क्या करना चाहिए? यह प्रश्न बहुत महत्त्वका है। यह निर्विवाद है कि यदि स्त्रियाँ चाहें तो वे इस क्षेत्रमें पुरुषोंसे कहीं अधिक सफलता प्राप्त कर सकती हैं। शिक्षित महिलाएँ अभी इस कामको पर्याप्त मात्रामें करती नजर नहीं आतीं। इसमें उनका दोष नहीं; उनको मिली शिक्षाका दोष है, ऐसा मैं मानता हूँ। इसलिए शिक्षित स्त्रियोंका पहला कार्य ऐसे प्रयत्न करना है जिससे उनकी बहनें इस दोषका शिकार न हों। इस विषयमें किसीको सन्देह नहीं कि आधुनिक शिक्षा स्त्रियोंको उनके विशेष

 
  1. यह सन्देश गुजराती नववर्ष के अवसरपर उक्त महिला-मण्डलको भेजा गया था।