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पत्र : जे॰ एल॰ मेरीमैनको

भोंकनेका बल आ जाये, तो हम दुनियाको हिला दें। प्रेमके अपने अन्तरमें होते हुए भी मैं हर क्षण उसके अभावका अनुभव करता रहता हूँ। कमी तो मुझमें बहुत है। कभी-कभी अधजल घड़ेकी तरह हो जाता हूँ। कल ही जो लोग मुझे प्रेमसे रोक रहे थे, उनके लिए मेरे पास समय नहीं था। इसलिए मनही-मन दुःखी होता रहता हूँ। यह कोई प्रेमकी निशानी नहीं। यह तो 'अधजल गगरी छलकत जाये' जैसी बात है। नया वर्ष तुम्हारे लिए लाभदायी सिद्ध हो। अपनी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विभूतियाँ बढ़ाकर उन सबको तुम भारतके चरणोंपर प्रेम-भावसे अर्पितकर दो, यही मेरी इच्छा है और यही आशिष।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४

३०. पत्र : जे॰ एल॰ मेरीमैनको

मोतीहारी
नवम्बर १७, १९१७

प्रिय श्री मेरीमैन,

मैं कल कोयरी गया था। वहाँ शिवरत्न[१] तथा अन्य लोगोंसे मुलाकात हुई। मुझे पता चला है कि जो जाँच आपके आदेशानुसार की गई है उसका परिणाम शिवरत्नको इसी २३ तारीखको सूचित किया जानेवाला है, इस कारण मैं तबतक के लिए अपने विचार प्रकट करना स्थगित कर रहा हूँ।

सिराहा देहातकी रैयतका कहना है कि उस कारखाने में कुछ इकरारनामोंपर

लोगोंसे अँगूठेकी छाप ली जा रही है। किन्तु मैं मसविदा देखे बिना उन्हें क्या करना चाहिए इसके बारेमें सलाह नहीं दे सकता। इसलिए मैंने उनसे कह दिया है कि यदि वे मेरी सलाह चाहते हैं तो उन्हें चाहिए कि जबतक मैं मजमूनको न देख लूँ तबतक उन्हें किसी कागजपर हस्ताक्षर नहीं करने चाहिए; क्योंकि उन्हें देखे बिना मैं सलाह दे ही नहीं सकता। मैंने सोचा कि यह बात आपको बतला देना ठीक होगा। मैं यह भी कह दूँ कि यदि जमींदार, रैयतके साथ जो इकरारनामा लिखा जाना है, वह आपको दिखा दिया करे तो इससे जमींदार और रैयतके सम्बन्ध मधुर होने लगेंगे। आपको इस बातकी जानकारी होगी ही कि रैयतकी बहुधा यह शिकायत रहा करती है कि

 
  1. शिवरत्न नोनिया।

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