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पत्र : जे॰ एल॰ मेरीमैनको

धर्मकी प्रतिष्ठा चाहनेवाले आप यह सब कैसे नहीं देख पाते? यह प्रश्न निरन्तर मेरे सम्मुख रहता है। भंगीका स्पर्श करने में कदापि पाप नहीं है। गायके नामपर मुसलमानका वध करनेमें कदापि पुण्य नहीं है, धर्म-पुस्तकोंमें कदापि असत्यका प्रतिपादन नहीं हो सकता, स्वेच्छाचारीके हाथमें धर्मकी बागडोर कदापि नहीं दी जा सकती; ये सब वाक्य सूत्रों-जैसे हैं। इनमें मतभेद कैसे हो सकता है? वैष्णव समाजपर आपका जो अधिकार है, आप उसका उपयोग इस दिशामें क्यों नहीं करते? मुझ-जैसोंको आप और तरह न सही, वचनसे ही मदद क्यों नहीं देते? जो मैं देखता हूँ उसे मैं आपको किस तपस्याके द्वारा दिखाऊँ? ये विचार मेरे मनमें उठते ही रहते हैं। आप एक बार फिर मनही-मन विचार कीजिएगा।

मैं अपने भाषण[१] आपको, इस इच्छासे कि आप उपर्युक्त बातोंको दृष्टिमें रखकर एक बार फिर उन्हें पढ़ें, भेज रहा हूँ।

हालाँकि मैं फिलहाल पढ़ नहीं सकता फिर भी आप मुझे कहे हुए ग्रन्थ अवश्य भेजिये।

आश्रमके लिए साबरमतीके किनारे ५५ बीघे जमीन ली है। उसपर निर्माणकार्य हो रहा है, लेकिन प्लेगके कारण उसकी रफ्तार बहुत धीमी है।

मोहनदासके प्रणाम

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ ४१२४) की फोटो-नकलसे।

३२. पत्र : जे॰ एल॰ मेरीमैनको

मोतीहारी
नवम्बर १९, १९१७

प्रिय श्री मेरीमैन,

मैं जो स्कूल खोल रहा हूँ उनमें १२ बरससे कम उम्रके ही बालक दाखिल किये जाते हैं। ज्यादासे-ज्यादा, जितने हो सके उतने बच्चे लेने और उनको सब तरहकी शिक्षा देनेका इरादा है, अर्थात् उन्हें हिन्दी या उर्दूका ज्ञान देना है और उसके माध्यमसे गणित, इतिहास और भूगोलके प्रारम्भिक सिद्धान्त एवं सरल वैज्ञानिक सिद्धान्त सिखाने हैं और कुछ औद्योगिक शिक्षा देनी है। अभी तक कोई निश्चित पाठ्यक्रम तैयार नहीं किया गया है, क्योंकि मेरे लिए यह बिलकुल नया-नया अनुभव है। मुझे शिक्षाकी हमारी वर्तमान प्रणालीकी उपयोगितामें विश्वास नहीं है। उसमें छोटे बच्चोंकी नैतिक और मानसिक शक्तियाँ विकसित होनेके बजाय कुंठित हो जाती है। यद्यपि मैं अपने प्रयोगमें उसकी सब अच्छी बातें ले लूँगा, किन्तु मैं उसके दोषोंसे बचनेका प्रयत्नन करूँगा। मुख्य लक्ष्य यह है कि बच्चोंका सम्पर्क सुसंस्कृत और निर्दोष चरित्रके स्त्री-

 
  1. ये भाषण उपलब्ध नहीं हैं। लगता है कि गांधीजीका संकेत जिन भाषणोंकी ओर था अनुमानत: ये वही भाषण थे अथवा उनमें वे भाषण भी शामिल थे जो उन्होंने नवम्बर ५ को गोधरामें और नवम्बर १४ को मुजफ्फरपुर में दिये थे।