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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

पुरुषोंसे रहे। मेरी दृष्टिमें यही शिक्षा है। अक्षर-ज्ञानका प्रयोग उसी उद्देश्यकी पूर्तिके निमित्त करना है। औद्योगिक शिक्षा उन बच्चोंको, जो हमारे पास आयें, आजीविकाका अतिरिक्त साधन देनेके लिए सोची गई है। इसका उद्देश्य यह नहीं है कि वे शिक्षा पूरी करके अपने पैत्रिक धन्धे कृषिको त्याग दें, बल्कि यह है कि वे स्कूलमें अर्जित ज्ञानका उपयोग कृषिकी और कृषकके जीवनकी दशा सुधारनेके लिए करें। हमारे शिक्षक वयस्क लोगोंके जीवनको भी प्रभावित करेंगे और सम्भव होगा तो पर्देमें भी अर्थात् स्त्री-समाजमें भी प्रवेश करेंगे। इसलिए वयस्क लोगोंको स्वास्थ्य-सफाईकी शिक्षा दी जायेगी और उन्हें सामाजिक सुख-सुविधाओंमें वृद्धिके लिए संयुक्त कार्य करनेके लाभ बताये जायेंगे। इस संयुक्त कार्यका उपयोग ऐसे कार्योंमें किया जायेगा जैसे गाँवके रास्ते ठीक करना और कुँए खोदना आदि। चूंकि किसी भी स्कूलमें ऐसे स्त्री-पुरुष नियुक्त न किये जायेंगे जो सुशिक्षित न हों, इसलिए हम यथासम्भव मुफ्त दवा-दारू भी देना चाहते हैं। उदाहरणके लिए बधरवामें श्रीमती अवन्तिकाबाई गोखले, जो एक प्रशिक्षित नर्स और दाई है, स्कूलकी निर्देशिका हैं और उनके पति उनकी सहायता करते हैं। उन्होंने अभी चार ही दिन काम किया है। इन दिनोंमें वे बीसियों रोगियोंको अंडीका तेल और कुनैन बाँट चुकी हैं एवं कई रुग्ण स्त्रियोंको देख चुकी हैं।

यदि आप कुछ और जानकारी चाहते हैं, तो मैं अवश्य ही प्रसन्नतापूर्वक दूँगा। मैं तो आशा करता हूँ कि मैं अपने कार्य में स्थानीय अधिकारियोंका पूरा सहयोग प्राप्त कर सकूँगा। मैं कल अमोलवासे दो मील दूर श्रीरामपुरमें एक दूसरा स्कूल खोल रहा हूँ।

दस्तावेजोंके बारेमें काश्तकारोंकी शिकायतोंके सम्बन्धमें प्रत्यक्ष है कि जो खास बात मैं कहना चाहता था वह मैंने नहीं कही है। मैं जानता हूँ कि जोर-जबरदस्तीके बारेमें काश्तकार अदालतमें जा सकते हैं। कठिनाई यह है कि उन्हें व्यवस्थित रूपसे कार्य करनेका न तो प्रशिक्षण मिला है और न वे उसके लिए काफी संगठित ही है। नैतिक दृष्टिसे जो बात जोर-जबरदस्तीमें आती है वह सम्भव है कानूनमें जोर-जबरदस्ती न भी हो। चम्पारनके किसानोंका मेरा अनुभव तो यह है कि वे बेहद नासमझ हैं और उनसे कोई भी बात आसानीसे मनवाई जा सकती है। इसलिए मेरी मान्यता तो यह है कि ऐसे लोगोंको उनके अपने अज्ञानसे बचानेका काम उनके संरक्षकके रूपमें सरकारको करना है। मैं यह नहीं कहता कि आपके ध्यानमें सरैयाका जो मामला लाया गया है उसमें कोई जोर-जबरदस्ती बरती गई है। मैंने तो केवल यही कहा है कि जैसे दस्तावेजोंका जिक्र मैंने अपने पिछले पत्र में किया है उनपर दस्तखत कर चुकनेपर जोर-जबरदस्तीका कोई आरोप न किया जा सके, इस गरजसे आप उचित समझें तो काश्तकारोंको दस्तखत करनेके लिए जो करार अब दिये गये हैं उनके सम्बन्धमें पूछताछ कर लें।

आपका सच्चा,
मो॰ क॰ गांधी

महादेव देसाईके अक्षरों में और गांधीजीके हस्ताक्षरयुक्त मूल अंग्रेजी पत्र (नेशनल आर्काइब्ज़ ऑफ इंडियासे); तथा सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज़ मूवमेंट इन चम्पारन, १९१७-१८, सं॰ २१०, पृष्ठ ४३०-१ से भी।