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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

हैं, वहाँकी या चम्पारनकी विशेष स्थितिके कारण नहीं हो रहा है, बल्कि हिन्दुस्तानके गाँवोंकी बहुत दिनोंसे यही हालत चली आ रही है।

इन घटनाओंकी चर्चा तो मैंने सिर्फ इसलिए की है कि ज्यों-ही मेरा यह प्रयोग थोड़ा-बहुत आगे बढ़े त्यों ही मैं इस काममें आपकी सक्रिय सहानुभूति और सहयोग चाहूँगा क्योंकि इसमें सभी लोग बिना संकोचके मिल-जुलकर योग दे सकते हैं।

डॉ॰ देव[१], जो शल्य-क्रिया और चिकित्सामें प्रवीण तथा अनुभव-प्राप्त व्यक्ति हैं और जो भारतसेवक समाजके मन्त्री भी हैं, मंगलवारको यहाँ आये थे। इस कामके लिए उनकी संस्थाकी ओरसे हमें उनकी सेवाएँ [कुछ कालके लिए] सुलभ कर दी गई हैं। उनके साथ तीन अन्य स्वयंसेवक भी हैं, जिनमें से कर्वेके विधवा आश्ररमकी एक महिला भी हैं। हमारी योजनाके चिकित्सा विभागकी देखरेख डॉ॰ देवका मुख्य कार्य होगा।

मैं यह भी कह दूँ कि पन्द्रह दिनसे कुछ अधिक समयके लिए मैं चम्पारनके बाहर जा रहा हूँ। मेरी अनुपस्थितिमें मेरा सब काम बाबू ब्रजकिशोर करेंगे।

आपका सच्चा,
मो॰ क॰ गांधी

महादेव देसाईके अक्षरोंमें और गांधीजीके हस्ताक्षरयुक्त मूल अंग्रेजी पत्र (नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडिया) से; तथा सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, १९१७-१८, सं॰ २१२, पृष्ठ ४३१-२ से भी।

३५. पत्र : चन्दुलालको

मोतीहारी
कार्त्तिक सुदी ८ [नवम्बर २२, १९१७]

भाईश्री चन्दुलाल,

आपका पत्र मिला है। आपने ठीक व्रत लिये हैं और उनका पालन भी सही ढंगसे किया है। व्रतोंके बिना चरित्रका विकास नहीं होता, ऐसी मेरी मान्यता है। जैसे जहाजके लिए लंगर है वैसे ही मनुष्यके लिए व्रत हैं और जैसे लंगर-विहीन जहाज इधर-उधर डोलता हुआ अन्तमें चट्टानोंसे टकराकर टूट जाता है, व्रतोंसे रहित मनुष्यकी दशा भी वैसी ही होती है। सत्य-व्रतमें और सब व्रतोंका समावेश हो जाता है। सत्यको समझनेवाला ब्रह्मचर्य कैसे तोड़ सकता है और चोरी कैसे कर सकता है? ब्रह्म ही सत्य है और सब मिथ्या है, यह सूत्र सच्चा है तो सत्यके पालनमें ब्रह्मज्ञान समाविष्ट है।

अहिंसा और सत्य पर्यायवाची व्याख्याएँ हैं। 'सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्' में यही भावना ओतप्रोत जान पड़ती है। जिस सत्यमें दुःख नहीं है वही खरा है, और वही

 
  1. डॉ॰ हरि श्रीकृष्ण देव।