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पत्र : चन्दुलालको

अहिसामय है। सत्य कड़वा लगता है लेकिन उसका परिणाम दुःखमय नहीं होता। सत्यके प्रयोगसे सामने बैठा हुआ व्यक्ति चिढ़ जायेगा, लेकिन उसकी आत्मा गवाही देगी कि उसके विषयमें जो कुछ कहा गया है वह शुद्ध उद्देश्यसे कहा गया है और सही है। सत्यका हम बहुत व्यापक अर्थ लेते हैं। सत्य अर्थात् केवल सत्यवचन नहीं बल्कि जो अर्थ ब्रह्म सत्यमें समाया हुआ है वह है। यही अर्थ 'ट्रथ' शब्दका है।

मुझे याद है, मैंने आपसे कहा था कि आप स्त्री-शिक्षाके लिए नहीं बने है। [इसमें] मुझसे भूल भी हो सकती है लेकिन वह काम अपेक्षाकृत कठिन है और आपमें उस [कार्य] के लिए अपेक्षित शक्ति है, मुझे ऐसा नहीं लगा। आप स्वतन्त्र रीतिसे इस कार्यको कर सकते हैं, ऐसा मुझे आपके विषयमें अनुभव नहीं हुआ। इतना होनेके बावजूद यदि आपको इस कार्यके प्रति लगाव है तो आप भले ही इसे करते रहिए। मुझे लगता है कि शारदाबेन[१] भी अब आपके बिना गुजारा नहीं कर सकतीं। इसलिए यही ठीक होगा कि आप उस कामको न छोड़ें।

मुझे आपमें शारीरिक उत्साह कम नजर आया है। आपको आश्रममें अथवा दूसरी जगहमें, जितना शरीर झेल सके, उतना शारीरिक काम—अनाज साफ करनेसे लेकर गड्ढे खोदने तक करनेकी आवश्यकता है। वैसा करते हुए आपकी मानसिक शक्तिको नया तेज मिलेगा तथा आपमें जो शिथिलता है वह जाती रहेगी। आँख, हाथ, पैर आदिको व्यायामकी जरूरत है। मैंने आपमें कार्य-शक्तिका अभाव पाया है।

मैंने भाई नन्दलाल किसनका पत्र पढ़ा है। देशी रजवाड़ोंमें क्या प्रयत्न किया जा सकता है इस विषयपर बातचीत करेंगे। दिसम्बरमें आप बम्बई अथवा अहमदाबादमें तो मिलेंगे ही।

आप अपने विषयमें श्रद्धा रखेंगे तो परिवारके लिए बहुत-कुछ कर सकेंगे। माँको वश करना लड़कोंका काम है। माँका प्रेम ऐसा होता है कि वे लड़कोंकी इच्छाओंके भी वशीभूत हो जाती हैं। लड़कियोंको आप पर्याप्त समय नहीं देते यह तो अपराध है।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ ३२५८) की फोटो-नकलसे।

 
  1. एक सामाजिक कार्यकर्ती; विद्यागौरी नीलकण्ठकी बहन।