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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

पहले कमसे-कम तीन घंटेतक मनुष्यको कुछ खाना नहीं चाहिए। हवा भी खुराक है, इसलिए ऐसे कमरेमें सोना चाहिए जिसमें खिड़की और दरवाजे हों; खिड़की-दरवाजे खुले रखने चाहिए और सिरपर चादर लपेट कर नहीं सोना चाहिए। सिरको सर्दी लगे तो टोपी पहनकर सोओ, लेकिन मुँह चादरसे बाहर ही रखना चाहिए। श्वास मुहसे नहीं, नाकसे लेनी चाहिए। नाकसे श्वास लेने में तनिक भी सर्दी लगनेकी सम्भावना नहीं होती। पानी भी साफ होना चाहिए। हमेशा उबला तथा मोटे कपड़ेसे छना हुआ पानी पीना अच्छा है। कपड़ेको बहुत सावधानीसे धोना चाहिए। उसी प्रकार गागर, कलश आदि भी प्रतिदिन अन्दरसे अच्छी तरह साफ किये जाने चाहिए। दो घंटे पैदल चलनेपर जितना श्रम होता है, प्रत्येक स्त्री-पुरुषको प्रतिदिन उतनी कसरत करना जरूरी है।


४. शरीरको उपर्युक्त विधिसे नीरोग रखने के बावजूद यदि घर और [उसके] आस-पासका वातावरण स्वच्छ न हो तो भी रक्तके दूषित होनेकी सम्भावना है। घरकी खिड़कियाँ, दरवाजे, छत, जमीन, सीढ़ियाँ—संक्षेपमें प्रत्येक भागको बराबर साफ किया जाना चाहिए। अर्थात् धोने योग्य भागको अच्छी तरहसे धोनेके बाद सूखने देना चाहिए। मकड़ीका जाला, धूल, घास और कूड़े-करकटको अच्छी तरह बुहारकर घरसे बाहर फेंक देना चाहिए। घरके किसी भागमें सीलन न रहे ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए। कालीन और दरी आदिको भी प्रतिदिन झाड़ना चाहिए और [उन्हें] हमेशा एक ही जगहपर नहीं बिछाना चाहिए। डॉक्टरोंका कहना है कि प्लेग पिस्सुओंकी मारफत फैलता है। स्वच्छ घरमें जहाँ हवा और उजाला काफी मात्रामें होते हैं वहाँ पिस्सू कदाचित् ही आयेंगे। उनका यह भी कहना है कि प्लेग चूहोंसे होता है। इसलिए मनुष्यको घरके कोनोंके पलस्तर आदिकी अच्छी तरहसे जाँच करके कहीं भी बिल न रहने पाये, ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए। यह काम ऐसा है कि इसे आसानीसे और बिना किसी खर्चके किया जा सकता है। सिर्फ हमारे आलस्यके कारण ही चूहे हमारे घरोंमें बिल बनाकर रह सकते हैं। घरमें बिल्ली पालनेसे चूहोंका आना रुक सकता है।


५. लेकिन हिन्दुस्तानमें इस रोगके होनेका सबसे बड़ा कारण हमारी जंगल जानेकी खराब और अत्यन्त हानिकारक टेव है। बहुतसे लोग बाहर जाते हैं और मैलेको मिट्टी अथवा अन्य रीतिसे ढंकते नहीं हैं जिसके फलस्वरूप करोड़ों मक्खियाँ पैदा होती हैं और वे मक्खियाँ मैलेपर बैठनेके बाद हमारे शरीर, हमारे वस्त्रों और हमारे भोजनपर भी बैठती हैं। मैलेसे अनेक प्रकारकी विषैली गैस पैदा होती हैं और आसपासके वातावरणको बिगाड़ती हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि मनुष्योंकी सर्वोत्तम खुराक, हवा, दूषित हो जाती है और उनका शरीर स्वस्थ रह ही नहीं सकता। हमारे पाखानोंका मैला भी इतना ही अथवा इससे भी अधिक हानिकारक है, क्योंकि वह तो अपने घरमें ही होता है। इसलिए यदि हम बाहर शौच करनेके लिए जायें तो जैसे अन्य देशोंके लोग गड्ढे खोदकर शौच करनेके बाद मैलेको मिट्टीसे ढँक देते हैं, हमें भी वैसा ही करना चाहिए। और पाखानोंकी व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिससे हर बार शौच करनेके बाद हम मैलेको अच्छी तरहसे सूखी मिट्टीसे ढँक सकें। मैला किसी तरहकी बाल्टीमें इकट्ठा किया जाना चाहिए। कूड़ा-स्थानोंका सर्वथा त्याग करना चाहिए तथा