पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/१३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०१
पत्र : ए॰ एच॰ वेस्टको

११. रोगीके कपड़े, नदी अथवा ऐसे स्थानपर जहाँ अन्य [लोगोंके] कपड़े धोये जाते हों, न धोयें। उन्हें उबलते हुए साबुनके पानीमें डुबानेके बाद धोइये। अगर वे अत्यन्त गंदे हो गये हों तो उन्हें जला दें। लिहाफ आदिका किसी और व्यक्तिको उपयोग नहीं करना चाहिए—और यदि वे साफ हों तो आठ दिन तक रोज धूपमें सुखाये जायें वह भी इस प्रकार कि दोनों ओर धूप लगे। अगर उसे जला देनेकी सामर्थ्य हो तो जला ही दें।

[गुजरातीसे]

एस॰ एन॰ ६३९९ की फोटो-नकलसे।

४०. पत्र: ए॰ एच॰ वेस्टको

मोतीहारी
दिसम्बर १०, १९१७

प्रिय वेस्ट,

तुम्हारा महत्त्वपूर्ण पत्र मेरे सामने है। मेरा खयाल ऐसा है कि यदि तुम 'इंडियन ओपिनियन' शहरमें[१] ले जाये बिना चला ही नहीं सकते तो इसका प्रकाशन रोक दो। फुटकर छपाई या विज्ञापनोंके लिए स्पर्धा करनेका तुम्हारा विचार मुझे पसन्द नहीं है; मैं समझता हूँ कि यदि ऐसा करनेकी नौबत आयेगी तो इसकी कोई उपयोगिता ही न रह जायेगी। इसकी अपेक्षा तो मुझे यह ज्यादा अच्छा लगेगा कि तुम और सैम[२] फीनिक्स बेच डालो और कोई स्वतन्त्र काम करने लगो। अगर अखबारके बिना तुम फीनिक्सको कोई रूप दे सकते हो तो, वह मुझे ठीक लगेगा; परन्तु यदि तुम फीनिक्समें खेतीबारी करके अपना निर्वाह तक नहीं कर सकते तो फीनिक्सको बेच डालना ही चाहिए। हिल्डाकी शिक्षाका भार तुमपर रह सकता है। निःसन्देह अपने आदर्शको पूर्ण करने के लिए [प्रायः] सख्त कदम उठाना बहुत आवश्यक हो जाया करता है।

यदि तुम फीनिक्समें पत्रको चलाते हुए अथवा उसके बिना अपना निर्वाह नहीं कर सकते, और अपने लिए कोई अच्छी नौकरी भी नहीं खोज सकते, तो मुझे तुम्हारे गुजारेके लिए यहाँसे व्यवस्था करनी होगी। उस सूरतमें तुम्हें सूचित करना होगा कि तुम्हें कितने रुपये चाहिए और कब तक के लिए। क्योंकि मैं यह तो मानता ही हूँ कि तुम वहाँ कोई न कोई काम खोज लेनेका प्रयत्न करोगे। अगर देवी[३] यहाँ आ सके तो मैं उसको बुला लेनेके लिए बिलकुल तैयार हूँ और अगर तुम अकेले कुछ समयके

 
  1. डर्बन।
  2. गोविन्दस्वामी, इंटरनेशनल प्रिटिंग प्रेस, फीनिक्सके फोरमैन।
  3. ए॰ एच॰ वेस्टकी बहन एडा।