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४२. पत्र : गोविन्दस्वामीको

मोतीहारी
दिसम्बर ११, १९१७

प्रिय सैम,

श्री वेस्टने मुझसे पूछा है कि क्या पत्रके प्रकाशनका कार्य शहरसे करना ठीक न होगा? मैंने कहा है "नहीं"। यदि तुम 'इंडियन ओपिनियन'को फीनिक्ससे न चला सके तो मुझे बहुत ही दुःख होगा। कुछ भी हो छापेखानेको वहाँसे कहीं मत ले जाओ। अगर तुम पत्रको फीनिक्ससे नहीं निकाल सकते तो वह बन्द ही कर दिया जाये। ऐसी स्थितिमें तुमको अपनी जीविका खेतीके द्वारा ही अर्जित करनी चाहिए और उसमें अपना सारा समय लगाना चाहिए। अगर इसमें भी सफलता न मिले, तो शहरमें जा कर जीविकोपार्जन करना चाहिए। मैंने मणिलालको लिखा है कि वह केवल राम,[१] देवीबहन और नागरजीकी सहायतासे गुजराती भाग ही प्रकाशित किया करे। अगर राम और नागरजीका भी गुजारा उसके द्वारा सम्भव न हो तो उनको भी चले जाना चाहिए। अगर गुजरातीके दो पृष्ठ ही हर सप्ताह प्रकाशित होते रहें तो भी मुझे बुरा नहीं लगेगा।

तुम्हारी कसौटी हो रही है। उसमें खरे उतरना है। जाब वर्कमें हम डर्बनके मुद्रकोंका मुकाबला कर ही नहीं सकते।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ४४२८) की फोटो-नकल से।

सौजन्य : ए॰ एच॰ वेस्ट

 
  1. रामनाथ; फीनिक्स प्रेसके कार्यकर्ता, देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ८२।