तीन महीनोंमें मुझे तुम्हारे सिर्फ तीन ही पत्र मिले हैं। हाँ, पोलक और मिस विटरबॉटमने[१] तुम्हारे बारेमें मुझे लिखा था। तुमसे गले मिलनेको मेरा कितना जी हुआ करता है। यहाँ मुझे आये-दिन नये-नये अनुभव होते रहते हैं। इन सबमें तुम्हें अपना हिस्सेदार बनानेकी मेरी इच्छा हुआ करती है। किन्तु इस दानवी युद्धका कोई छोर ही नजर नहीं आता। सुलहकी तमाम बातोंसे तो दिलकी उलझनें बढ़ ही रही हैं। फिर भी समस्त मानव-प्रवृत्तियोंकी तरह इसका भी अन्त तो होगा ही। अगर हमारी मित्रता स्थान और कालका अन्तर सहन न कर सकी तथा इस उबा देनेवाली प्रतीक्षाके परिणाम-स्वरूप और भी दृढ़ एवं शुद्ध न बन पाई तो वह बिलकुल निकम्मी ठहरेगी। आखिर हमारा यह शरीर है क्या? कल मैं पवनके मन्द झकोरोंमें सामने के वृक्षोंकी ओर निहारता बैठा रह गया। मैंने देखा कि नित्य परिवर्तनशील इन विराट वृक्षोंमें ऐसी कोई चीज जरूर है, जो चिरकाल तक टिकी रहती है। हरएक पत्तेका अपना अलग जीवन होता है। वह गिरता है और सूखता है, किन्तु पेड़ जिन्दा रहता है। हरएक वृक्ष भी समयकी गतिसे या क्रूर कुल्हाड़ीके प्रहारसे मौतका शिकार होता है; किन्तु जंगल, जिसका यह पेड़ एक हिस्सा है, जीवित रहता है। हम भी मानव-वृक्षके ऐसे पत्ते ही हैं। हम भले ही निष्प्राण हो जायें तो भी हममें जो सनातन तत्त्व है, वह अनन्त काल तक बिना किसी परिवर्तनके कायम रहता है। कल शामको इस तरह विचारमग्न होते हुए मुझे बड़ा आनन्द मिला। मुझे तुम्हारी याद आ गई और मैंने एक गहरी साँस ली। किन्तु मैंने तुरन्त ही अपनेको सँभाल लिया और अपने-आपसे कहा : "मैं जानता हूँ कि मेरा मित्र, कोई पार्थिव शरीर नहीं है, किन्तु उसमें जीवन संचारित करनेवाली आत्मा है।"
- सस्नेह,
तुम्हारा पुराना मित्र,
- [अंग्रेजीसे]
- महादेवभाईकी हस्तलिखित डायरी
- सौजन्य : नारायण देसाई
- ↑ फ्लॉरेंस ए॰ विटंरबॉटम, नैतिकता समिति संघ, लन्दन (यूनियन ऑफ एथिकल सोसाइटीज) की मंत्री।