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५४. प्रस्ताव : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसमें[१]

कलकत्ता
दिसम्बर २९, १९१७

यह महासभा इस बातपर पुन: खेद प्रकट करती है कि दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीय अब भी निर्योग्यताओंसे कष्ट पा रहे हैं। इनका उनके व्यापारपर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है और इनके कारण वहाँ उनका निवास कठिन हो जाता है एवं साम्राज्यके इन भागोंमें उनके प्रवास और संचारपर अनुचित और बेजा प्रतिबन्ध लगते हैं। यह महासभा आशा करती है कि स्थानीय अधिकारी उन भारतीयोंके प्रति अपने दायित्वको अनुभव करेंगे जिन्होंने इन निर्योग्यताओंके बावजूद एक दल संगठित करके युद्धमें पूरा भाग लिया है; वह यह भी आशा करती है कि उनपर दूसरे मामलोंमें जो निर्योग्यताएँ लगी हुई हैं एवं जिनकी शिकायत की गई है, वे उन्हें दूर कर देंगे। यह महासभा अध्यक्षको अधिकार देती है कि वे इस प्रस्तावका सार सम्बन्धित अधिकारियोंको भेज दें।

[अंग्रेजीसे]
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके १९१७में हुए ३२वें अधिवेशनको रिपोर्ट।

५५. प्रस्ताव : अखिल भारतीय समाज-सेवा सम्मेलनमें[२]

कलकत्ता
दिसम्बर ३०, १९१७

सरकार तथा कुछ संस्थाओंने दलित-वर्गोंके उत्थान और शिक्षा-दीक्षाके लिए जो साधन प्रयुक्त किये हैं इस सम्मेलनकी रायमें उनसे जनसाधारणका ध्यान दो बातोंकी ओर आकर्षित हुआ है, एक तो यह कि पतनकारी सामाजिक विषमता मौजूद है और दूसरे यह कि उनके परिणामस्वरूप देशकी सामान्य उन्नतिमें बाधा पड़ रही है। परन्तु, इस सम्मेलनकी रायमें सरकार द्वारा अबतक काममें लाये गये साधन उक्त बुराइयोंको दूर करने में नितान्त अपर्याप्त रहे हैं। अतएव, यह सम्मेलन सरकार तथा समाज-सुधार-संस्थाओंसे आग्रहपूर्वक निवेदन करता है कि (१) दलित-वर्गोको शिक्षित करनेके निमित्त

 
  1. कलकत्ते में राष्ट्रीय महासभा कांग्रेसका जो ३२ वाँ अधिवेशन हुआ था उसमें यह तेरहवाँ प्रस्ताव था और इसे गांधीजीने पेश किया था। उन्होंने अपना भाषण हिन्दीमें दिया था।
  2. यह सम्मेलन कांग्रेस पंडालमें डॉ॰ पी॰ सी॰ रायकी अध्यक्षतामें हुआ था, अन्य लोगोंके साथ श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुरने भी इसमें भाग लिया था। गांधीजी द्वारा पेश किये गये इस प्रस्तावका समर्थन नाटोरके महाराजाने किया था और एम॰ आर॰ जयकरने इसका अनुमोदन किया था।