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भाषण : राष्ट्रीय भाषा सम्मेलनमें

और अधिक सुविधाएँ प्रस्तुत की जायें और (२) हरिजनोंकी निर्योग्यताओं और उनके प्रति बरते जानेवाले द्वेषभावको दूर करनेकी दृष्टिसे समस्त सार्वजनिक संस्थाओंमें कानूनन समानताका व्यवहार प्रचलित किया जाये।

[अंग्रेजीसे]
बंगाली, ५-१-१९१८

५६. भाषण : प्रथम बंग कृषि-विशेषज्ञोंकी परिषद् में[१]

कलकत्ता
दिसम्बर ३०, १९१७

...श्री गांधीने कहा "कृषि भारतीयोंका मुख्य व्यवसाय है और यह एक बहुत प्रतिष्ठित पेशा है। मैं किसानोंके साथ काम कर चुका हूँ और इसलिए मैं उनकी सब माँगों, शिकायतों, तकलीफों और जरूरतोंको जानता हूँ। मैं खुद भी शीघ्र ही कृषिका धन्धा शुरू करनेवाला हूँ और उसे सुधारने के लिए जो-कुछ कर सकूँगा, करूँगा। मैं हृदयसे आशा करता हूँ कि काश्तकार लोगोंकी स्थिति शीघ्र ही सुधरने लगेगी। मैं और पंडित मालवीयजी कहीं और जानेके लिए एक साथ निकले थे और यहाँ आ पहुँचे हैं; इसलिए मैं यहाँ देरतक नहीं बोलूँगा।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, ४-१-१९१८

५७. भाषण : राष्ट्रीय भाषा सम्मेलनमें[२]

दिसम्बर ३०, १९१७

लोकमान्य तिलक यदि हिन्दीमें बोलते तो बड़ा लाभ होता। लॉर्ड डफरिन तथा लेडी चेम्सफोर्डकी भाँति लो॰ तिलकको भी हिन्दी सीखनेका प्रयत्न करना चाहिए। रानी विक्टोरियाने भी हिन्दी सीखी थी। पण्डित मालवीयजीसे मेरी अर्जी है कि यदि वे कोशिश कर दें तो अगले वर्ष अन्य किसी भी भाषामें कांग्रेसके व्याख्यान न हों। मेरा यह झगड़ा है कि कल वे कांग्रेसमें हिन्दीमें क्यों नहीं बोले?

प्रताप, ७-१-१९१८
 
  1. परिषद् श्री सी॰ आर॰ दासकी अध्यक्षतामें मुस्लिम लीगके पंडालमें हुई थी। इसके कायक्रममें लगभग ५,००० लोगोंने भाग लिया था, गांधीजी पंडित मदनमोहन मालवीयके साथ कुछ ही देरके लिए परिषद् में उपस्थित हुए थे।
  2. कलकत्ताके अल्फ्रेड थियेटरमें; सम्मेलनके अध्यक्ष बाल गंगाधर तिलक थे। श्रीमती सरोजिनी नायडू और पण्डित मदनमोहन मालवीयने भी सम्मेलन में भाग लिया था।