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५८. प्रस्ताव : राष्ट्रीय भाषा सम्मेलनमें[१]
कलकत्ता
दिसम्बर ३०, १९१७
इस वस्तुस्थितिको ध्यानमें रखते हुए कि भारतके भिन्न-भिन्न प्रान्तोंमें बहुत बड़े पैमानेमें लोग हिन्दीका प्रयोग करते है और बहुसंख्यक लोग उसको आसानीसे समझ सकते हैं, इसको भारतकी सर्व सामान्य भाषा बनाना व्यावहारिक प्रतीत होता है।
[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, १५-१-१९१७
अमृतबाजार पत्रिका, १५-१-१९१७
५९. भाषण : ऑल इंडिया मुस्लिम लीगमें[२]
कलकत्ता
दिसम्बर ३१, १९१७
श्री गांधीने उर्दूमें दिये गये अपने भाषणमें कोरे प्रस्तावोंकी निरर्थकता बतलाते हुए निवेदन किया कि सबको कुछ ठोस कार्य करना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति चाहे हिन्दू हो अथवा मुसलमान, सरकारसे यह कह दे कि अगर वह अली भाइयोंको रिहा नहीं करती तो उनके साथ हम सबको भी नजरबन्द कर ले। विशेष हर्ष-ध्वनिके बीच गांधीजीने कहा, नजरबन्द किये गये मुसलमान लोगोंकी रिहाईके आन्दोलनमें प्रत्येक हिन्दू उनके साथ है।
[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, १-१-१९१८
बॉम्बे क्रॉनिकल, १-१-१९१८