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६०. भाषण : विश्वविद्यालय-भवनमें[१]

कलकत्ता
दिसम्बर ३१, १९१७

...भारतीयोंके हिन्दीके ज्ञान की कमीपर खेद प्रकट करते हुए गांधीजीने कहा कि देश-सेवा करनेके लिए उत्सुक सब हैं, परन्तु राष्ट्रसेवा तबतक सम्भव नहीं, जबतक कोई राष्ट्रभाषा न हो। उन्होंने कहा कि दुःखकी बात है कि हमारे बंगाली भाई राष्ट्रभाषाका प्रयोग न करके राष्ट्रीय हत्या कर रहे हैं। इसके बिना देशकी आम जनताके हृदयों तक नहीं पहुँचा जा सकता। इस अर्थमें बहुत लोगोंके द्वारा हिन्दीको काममें लाया जाना मानवतावादके क्षेत्रकी बात हो जाती है।

इसके बाद गांधीजीने मानवतावादके दूसरे पहलूकी चर्चा की अर्थात् देवियोंकी मूर्तियोंके आगे पशुओंकी बलि चढ़ाना और भोजनके लिए पशुओंको कत्ल करना। हिन्दू शास्त्र वास्तवमें पशुओंकी बलि चढ़ानेका आदेश नहीं देते। यह वर्तमान प्रथा उन अनेक बातोंमें से एक है जो हिन्दुत्वके नामसे चलती आ रही हैं। हिन्दू धर्म सही अर्थ में दो परिभाषाओं द्वारा व्यक्त किया गया है—"अहिंसा परम धर्म है"[२] और "सत्यसे बढ़कर अन्य शक्ति नहीं।"[३] पशु-बलि-जैसी नृशंस प्रथा इन सिद्धान्तोंके विपरीत बैठती है।

[अंग्रेजीसे]
अमृत बाजारपत्रिका, २-१-१९१८

६१. भाषण : अखिल भारतीय समाज-सेवा सम्मेलनमें

कलकत्ता
दिसम्बर ३१, १९१७

श्री गांधीने अध्यक्ष पद ग्रहण करते हुए निम्नलिखित भाषण दिया :

यदि मैं संगीत सुनना चाहूँ तो मुझे बंगालमें आना चाहिए। यदि मै कविता सुनना चाहूँ तो भी मुझे बंगालमें आना चाहिए। भारत बंगालमें समाविष्ट है, परन्तु बंगाल भारतमें परिव्याप्त नहीं है। मैने कुछ मारवाड़ी लड़कोंका गाना सुना। वह कुछ गँवारू-जैसा था। मैंने उन्हें सलाह दी कि वे बंगालियोंमें घुलें-मिलें।

 
  1. बॉम्बे ऐंड बंगाल ह्यूमैनिटेरियन फण्ड्सके तत्त्वावधानमें आयोजित सभाकी अध्यक्षता गांधीजीने की थी। श्रोताओं के अनुरोधपर उन्होंने अंग्रेजीमें भाषण दिया। यह उस भाषणका सारांश है। उसके बाद पण्डित मदनमोहन मालवीयने हिन्दीमें भाषण दिया और पशु-बलिकी निन्दा की।
  2. अहिंसा परमो धर्म:।
  3. सत्यान्नास्ति परं बलम्।