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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

अधिक युक्तियाँ देनेकी आवश्यकता न होती। ये ४६,३९,६६३ लोग वस्तुतः घुल-घुलकर मरे। किसीने भी उनकी मृत्युपर आँसू नहीं बहाये और इससे हमें अप्रितिष्ठाके सिवा और कुछ नहीं मिला। उस दिन एक प्रसिद्ध अंग्रेजने कहा था कि हम अंग्रेजोंने आपके लिए सब-कुछ सोचा-विचारा किन्तु आप हाथपर-हाथ धरे बैठे रहे। उसने आगे कहा कि बहुतसे अंग्रेजोंने अपने इंग्लैंडके अनुभवोंके आधारपर अपनी राये कायम की और जिन खराबियोंकी उन्होंने जाँच-पड़ताल की थी उनके बहुत कठिन और मँहगे उपाय बताये हैं। उपर्युक्त कथनमें बहुत-कुछ सचाई है। दूसरे देशोंमें सुधारकोंने महामारियोंको काबूमें कर लिया है। किन्तु यहाँ अंग्रेजोंने प्रयत्न किया है और उसमें वे असफल रहे हैं। उन्होंने भारत तथा यूरोपके बीच जो जलवायु-सम्बन्धी तथा अन्य बहुत बड़े अन्तर हैं उनकी उपेक्षा करके पश्चिमी देशोंके आधारपर विचार किया है, किन्तु हमारे डॉक्टरों तथा वैद्योंने प्रायः कुछ नहीं किया। मुझे विश्वास है कि जहाँ अंग्रेज असफल हुए हैं वहाँ यदि प्रथम श्रेणोके आधे दर्जन डाक्टर भी इन तीनों अभिशापोंको दूर करनेके कार्यमें अपने जीवन लगा दें तो उन्हें सफलता मिल जायेगी। मैं यह सुझाव देना चाहता हूँ कि इसका उपाय उपचारोंकी खोज करना नहीं, बल्कि रोगोंकी रोक-थामके तरीके खोज निकालना, या वस्तुतः उन तरीकोंको लागू करना है। मैं 'लागू करना' शब्दोंका प्रयोग करना अधिक ठीक समझता हूँ, क्योंकि उपर्युक्त साक्षीके आधारपर मैं जानता हूँ कि प्लेग (और मैं इसके साथ हैजा और मलेरियाको भी जोड़ता हूँ) का निवारण बिलकुल आसान है। रोकथामके तरीकोंके बारेमें किसी प्रकार भी विचार-विरोध नहीं है, हम केवल उन्हें उपयोगमें नहीं लाते। हमें निश्चय हो गया है कि जनसाधारण उन तरीकोंको नहीं अपनायेंगे। किन्तु यह उनपर सबसे बड़ा मिथ्या आरोप है। यदि हम केवल नम्र बनकर उनके पास जायें तो उनका मन आसानीसे जीत सकते हैं। सचाई यह है कि हम इस कामकी अपेक्षा सरकारसे करते हैं। मेरे विचारमें इस मामलेमें मार्ग-दर्शन सरकार नहीं कर सकती। यदि हम मार्ग-दर्शन कर सकें तो वह हमारा अनुसरण कर सकती है और हमें सहायता दे सकती है। फिर तो यहाँ हमारे डॉक्टरोंके लिए काफी काम है और उन कार्यकर्त्ताओंके लिए भी काफी काम है जो उनकी सहायता करेंगे। मैं देखता हूँ कि बंगालके लोग इस दिशामें कुछ-कुछ काम कर रहे हैं। मैं कह सकता हूँ कि इस समय स्वयंसेवकोंका एक छोटा-सा किन्तु उत्साही दल चम्पारनमें इस प्रकारका कार्य करनेमें व्यस्त है। दलके सदस्य विभिन्न गाँवोंमें नियुक्त कर दिये गये हैं। वहाँ वे ग्रामीण बच्चोंको पढ़ाते हैं, बीमारोंको औषधिको सहायता देते हैं और ग्रामीणोंको उनके कुओं तथा सड़कोंको साफ करके एवं मनुष्यके मैलेकी व्यवस्था आदि समझाकर स्वास्थ्य-विज्ञानकी व्यावहारिक शिक्षा देते हैं। भविष्यमें जो परिणाम होंगे उनके बारेमें अभी कुछ कहा नहीं जा सकता, क्योंकि अभी तो यह इस प्रयोगका आरम्भ ही है। यह सम्मेलन डॉक्टरोंकी एक समिति नियुक्त कर सकता है जो वहाँ जाकर तत्काल ग्रामीण स्थितिका अध्ययन करे और कार्यकर्त्ताओं तथा आम जनताके लिए हिदायतोंका एक पाठ्यक्रम तैयार करे। समितिकी नियुक्ति उपयोगी होगी।

रेलवेके तीसरे दर्जे के यात्री जिस महाकष्टको भोग रहे हैं इससे उन्हें मुक्ति दिलाकर कार्यकर्त्ता उनकी खासी सेवा कर सकते हैं। फिर चाहे वे पूरा समय काम करते हों