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भाषण : अखिल भारतीय सामाज-सेवा सम्मेलनमें

चाहे कुछ समय। उनके लिए इस कार्यकी ऐसी अच्छी सुविधाएँ मौजूद हैं जैसी अन्य किसी कार्यकी नहीं। मुझे यह कष्ट है, इसलिए मैं इसे बहुत अनुभव करता हूँ, ऐसी बात नहीं है; बल्कि चूँकि मैं इसे बहुत अनुभव करता हूँ इसलिए मैंने इसे जानबूझकर स्वयं अपने ऊपर लिया है। यह मामला देशके करोड़ों गरीब तथा मध्यमवर्गीय भाइयोंको प्रभावित करता है। वे विवश होकर जो तमाम कष्ट तथा अपमान सह लेते हैं उसके कारण प्रत्यक्षतः राष्ट्रकी दशा उसी प्रकार गिरती जा रही है, जैसे हमारे क्रूर व्यवहारसे तथाकथित दलित-वर्ग वैयक्तिक सफाईके नियमों तथा आत्मसम्मानके विचारके प्रति उदासीन हो गये हैं। जिन्हें रेलके मनहूस डिब्बेमें बैठने लायक जगह पानेके लिए सदा लड़ना-झगड़ना पड़ता है, जिन्हें खड़े होने लायक जगह पानेके उद्देश्यसे खिड़कीमें से कुछ कह सकनेसे पहले गाली-गलौज करनी पड़ती है और बुरा-भला कहना पड़ता है, जिन्हें धूलमें लेटे-लेटे यात्रा करनी पड़ती है, जो कुत्तोंकी तरह खाना लेते और खाते हैं, जिन्हें शारीरिक शक्तिमें अपनेसे अधिक शक्तिशाली लोगोंके सामने झुकना पड़ता है और भेड़-बकरियोंकी तरह ठसाठस भरे डिब्बोंमें कई-कई रातें बैठे-बैठे ऊँघ और थोड़ा-बहुत सोकर बितानी पड़ती हैं उनकी अधोगति अवश्यम्भावी है। रेलके कर्मचारी उन्हें बुरा-भला कहते हैं और ठगते हैं। हावड़ासे लाहौर जानेवाली रेलगाड़ी में हमारे काबुली भाई तीसरे दर्जे के यात्रियोंके दुःखोंकी परिसीमा ही कर देते हैं। वे जिन डिब्बोंमें घुस जाते हैं उनपर पूरा कब्जा जमा लेते हैं। कोई उनका विरोध करे, यह सम्भव नहीं। वे नाममात्रका बहाना मिलते ही गालियाँ देते हैं और हिन्दी भाषाके समस्त अश्लील शब्दोंका उपयोग करते हैं। यदि प्रतिकार किया जाये या किसी तरहका विरोध किया जाये तो मारपीट करनेमें भी नहीं हिचकिचाते। वे अच्छी जगहोंपर जबरदस्ती कब्जा कर लेते हैं और डिब्बोंमें भीड़ होनेपर भी पैर फैलाकर सोनेकी जिद करते हैं। उनकी दृष्टिमें किसी भी डिब्बेमें अधिक भीड़ नहीं होती और वे सभीमें घुस जाते हैं। नितान्त निःसहाय होनेके कारण ही मुसाफिर उनकी सारी भयानक ढिठाईको धीरजके साथ सहते हैं। यदि उनमें सामर्थ्य होता तो वे गालियाँ देनेका साहस करनेवाले व्यक्तिको, जैसे ये काबुली करते हैं, धक्के मार कर गिरा देते, किन्तु वे शारीरिक दृष्टिसे किसी प्रकार भी काबुलियोंके मुकाबलेके नहीं होते और हर काबुली मैदानी यात्रियोंसे, चाहे उनकी संख्या कितनी ही बड़ी क्यों न हो, अपनेको अधिक शक्तिशाली समझता है। यह ठीक नहीं है। इस आतंकवादका प्रभाव राष्ट्रीय चरित्रके लिए पतनकारी हुए बिना नहीं रह सकता। हम थोड़ेसे शिक्षित लोगोंका कर्त्तव्य है कि यात्रा करनेवाले लोगोंको इस अत्याचारसे मुक्त करें। मेरा विश्वास है कि काबुली विवेकसे वशमें किये जा सकते हैं। वे ऐसे लोग हैं जो ईश्वरसे डरते हैं। यदि आप उनकी भाषा जानते हैं तो आप उनके सद्भावको जागृत कर सकते हैं। किन्तु वे प्रकृति माँके बिगडै़ल बेटे हैं। हममें जो कायर हैं वे निःसन्देह इनके शारीरिक बलका उपयोग अपने जघन्य उद्देश्योंके लिए करते हैं। और फलस्वरूप अब ये सोचने लगे हैं कि वे गरीबोंके साथ जैसा चाहें व्यवहार कर सकते हैं और अपनेको इस देशके कानूनसे परे मान सकते हैं। यहाँ समाज-सेवाका काम बहुत है। इस तरहका कार्य करनेके लिए स्वयंसेवक गाड़ियोंमें जा सकते हैं और लोगोंमें कर्त्तव्यकी भावना पैदा कर सकते हैं। वे अधिक भीड़-भाड़को दूर करनेके लिए गार्डों और अन्य अधिकारियोंको बुला