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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

सकते हैं और ऐसी व्यवस्था कर सकते हैं कि मुसाफिर बिना किसी संघर्षके गाड़ियोंमें चढ़े और उतरें। यह स्पष्ट है कि जबतक काबुलियोंको धैर्यपूर्वक सद्व्यवहार करना नहीं सिखाया जाता तबतक उनका डिब्बा अलग रहना चाहिए और उन्हें किसी अन्य डिब्बेमें घुसनेकी अनुमति नहीं होनी चाहिए। अतिरिक्त स्थानकी व्यवस्थाको छोड़कर रेलयात्राकी अन्य सभी खराबियाँ तुरन्त दूर की जानी चाहिए। यह तो बहुत दिनोंसे चलता आ रहा है, इस अन्यायका कोई समाधान नहीं है। अन्याय शाश्वत अधिकार नहीं बन सकता।

दलित वर्गोंकी समस्या भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं। हिन्दू समाजने उन्हें जिस स्थितिमें पहुँचा दिया है उससे उन्हें ऊपर उठाना हिन्दू धर्मपर से एक बहुत बड़े कलंकको दूर करना है। इन वर्गोंके साथ किया जानेवाला वर्तमान व्यवहार धर्म और मानवताके प्रति किया जानेवाला पाप है।

किन्तु इस कार्यके लिए उत्कृष्टतम सेवाकी आवश्यकता होती है। उनके लिए मात्र स्कूल खोल देनेसे हमारी प्रगति नहींके बराबर ही होगी। हमें निश्चित रूपसे जनसाधारण और रूढ़िग्रस्त लोगोंके रुखमें परिवर्तन लाना होगा। मैं बता ही चुका हूँ कि हम इन दोनोंसे अलग हो गये हैं। उनपर हमारा प्रभाव नहीं पड़ता। हम ऐसा तभी कर सकते हैं जब हम उनसे उन्हींकी भाषामें बोलें। जिन भारतीयोंका आंगलीकरण हो चुका है उनके कथनका इनपर प्रभाव नहीं पड़ सकता। यदि हम हिन्दू धर्ममें विश्वास करते हैं तो हमें उनके पास हिन्दुओंके ढंगसे जाना चाहिए। हमें तपस्या करनी चाहिए और हिन्दू धर्मको अकलुषित रखना चाहिए। अन्धविश्वासपूर्ण तथा अज्ञानमय धर्मनिष्ठाके विरुद्ध सज्ञान धर्मनिष्ठा खड़ी की जानी चाहिए। किसी भी सामाजिक संगठनके लिए हमारी कुल जनसंख्याके पाँचवें भागको उपर्युक्त सामाजिक स्थितिमें पुन:प्रतिष्ठित करना एक योग्य कार्य है।

कलकत्तेकी बस्तियों तथा बम्बईकी चालोंमें सेवा करनेके लिए नैष्ठिक समाजसेवी कार्यकर्त्ताओंके आवश्यकता है। उनमें हमारे शिशु जल्दी ही मौतके मुँहमें चले जाते हैं और उनमें दुराचार, अधःपतन तथा गन्दापन पनपता और बढ़ता है।

हमारी शिक्षाकी दोषपूर्ण प्रणालीके कारण उत्पन्न होनेवाली मूलभूत बुराईको छोड़कर मैंने अबतक उन बुराइयोंका उल्लेख किया है जिनको दूर करनेके लिए जनसाधारणकी सेवा करनेकी आवश्यकता है। शायद विशिष्ट वर्गोकी ओर भी जनसाधारणकी अपेक्षा कम ध्यान देनेकी आवश्यकता नहीं है। मेरे विचारमें सभी बुराइयाँ बीमारियोंकी तरह एक ही बुराई या बीमारीकी निशानी है। वे विभिन्न माध्यमोंसे विभक्त होनेके कारण अलग-अलग दिखाई देती हैं। मूलभूत बुराई है सच्ची आध्यात्मिकताका विनाश। किन कारणोंसे यह विनाश हुआ है इसका विवेचन मैं इस मंचसे नहीं कर सकता। हमारे पूर्वजोंकी सत्य, अहिंसा तथा ब्रह्मचर्यकी अखण्ड शक्तिमें जो अत्यन्त सशक्त आस्था थी वह हममें से चली गई है। हमें उनपर कुछ-कुछ विश्वास तो जरूर है। नीतिके रूपमें वे सर्वोत्तम हैं, किन्तु यदि हमारा अनुशासनहीन विवेक उनके उल्लंघनका आदेश दे तो हम उनका उल्लंघन कर सकते हैं। हममें यह अनुभव करने योग्य श्रद्धा नहीं है कि यद्यपि वर्तमान स्थिति निराशाजनक लगती है, फिर भी यदि हम सत्य या