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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

हमारी गरीबीकी आधी समस्या हल हो सकती है।...हमें लोगोंको मवेशियोंसे दयापूर्वक काम लेना सिखाना है और सरकारसे देशके चरागाहोंको सुरक्षित रखनेको प्रार्थना करनी है। गोरक्षा आर्थिक दृष्टिसे आवश्यक है। किन्तु गोरक्षा जोर-जबरदस्तीसे नहीं की जा सकती। यह तभी हो सकती है जब हम गायोंको कसाईखानोंसे बचानेके लिए अपने अंग्रेज मित्रों तथा अपने मुसलमान भाइयोंकी सद्भावनाको उद्बोधित करें। यह प्रश्न पिंजरापोलों तथा गोरक्षा समितियोंकी व्यवस्थाके पूर्ण सुधारका प्रश्न है। इस अत्यन्त कठिन समस्याके समुचित समाधानका अर्थ है हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच पूर्ण एकताकी स्थापना तथा बकरीदके झगड़ोंकी समाप्ति।

मेरी प्रार्थनापर बहुतसे संघोंने जो साहित्य मुझे भेजा था उसे मैंने सरसरी निगाहसे देखा है। ये संघ प्रशंसनीय सामाजिक सेवा कर रहे हैं। मैं देखता हूँ कि कुछ संघोंके कार्यक्रममें उन विषयों में से, जिनका मैंने यहाँ उल्लेख किया है, बहुतसे विषय शामिल हैं। ये सभी संघ असाम्प्रदायिक है और देशके प्रसिद्ध स्त्री-पुरुष उनके सदस्य हैं। इसलिए ऐसी सेवाकी बहुत गुंजाइश है जिनका सुदूरगामी प्रभाव हो सकता है। किन्तु यदि कार्यको अपना प्रभाव राष्ट्रपर छोड़ना है तो, हमारे पास ऐसे कार्यकर्त्ता होने चाहिए, जो श्री गोखलेके शब्दोंमें कहें तो, इस कार्यके निमित्त अपना जीवन अर्पित कर दें। मुझे ऐसे कार्यकर्त्ता दीजिए और मैं वचन देता हूँ कि वे देशको उन सभी बुराइयोंसे मुक्ति दिला देंगे जिनसे यह पीड़ित है।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, २-१-१९१८

६२. पत्र : देवदास गांधीको

साबरमती
[१९१७ के अन्तमें]

चि॰ देवदास,

तुम्हारे पत्रकी राह देख रहा हूँ। तुम्हारा क्या कार्यक्रम है, लिखना। छोटालालकी, सुरेन्द्रकी और अपनी तबीयतका समाचार देना। जो कपड़ा वहाँ बनाया गया हो उसका नमूना भेजना। स्त्रियोंकी पाठशालामें अवन्तिका बहन क्या काम कर रही हैं?

यहाँसे अब मेरे पास लिखनेको बचा ही क्या है? महादेवभाई तुम्हें खबरोंसे शराबोर किये हैं।

जो हिन्दी अध्यापक चला गया था वह वापस आ गया है। मुझे विश्वास है कि हमारी पाठशाला लगभग पूर्णत्वको प्राप्त होगी। प्रयत्नमें तो विशेष कुछ बाकी नहीं रहा। दूसरी जमीन खरीदी है।

बापूके आशीर्वाद