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पत्र : जे॰ एल॰ मैफीको
[पुनश्च:]

चि॰ छगनलाल अब अनसूया बहनके पास रहता है।

ऊपरका पत्र लिखनेके बाद तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हारे उद्गारोंसे मुझे बहुत सन्तोष हुआ है। किन्तु तुम्हारे अक्षरोंसे उतना ही असन्तोष हुआ। तुम अक्षर सुधारो। मुझे तुम्हारी खाँसीसे हमेशा चिन्ता बनी रहती है। खाँसी खत्म होनी ही चाहिए। तुम श्वासोच्छवास पूरी तरह लेते हो? जब खाँसीका दौरा हो तब दो-तीन दिन अलोना भोजन लेकर देखो। दूध और घी भी छोड़ दो; केवल दलिया और शाक खाओ। ऐसा करनेसे शरीर स्वस्थ हो जायेगा और फिर धीरे-धीरे और अच्छा होता जायेगा। लेकिन सबसे अच्छा तो यह है कि खाँसी जड़से चली जाये। उसको नष्ट करनेके लिए जब वह [खाँसी] न हो तब पूरी कोशिश की जानी चाहिए। उसमें मुख्य प्रश्न श्वास लेनेका है। श्वास लेते समय लापरवाही मत बरतना। क्या तुम सोते समय मुँह बन्द रखते हो या सिर खुला रखते हो?

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ २०२६) की फोटो-नकलसे।

६३. पत्र : जे॰ एल॰ मैफीको

अहमदाबाद
जनवरी १,१९१८

सेवामें

जे॰ एल॰ मैफी, सी॰ आई॰ ई॰, आई॰ सी॰ एस॰
परमश्रेष्ठ वाइसरायके निजी सचिव,
दिल्ली

[प्रिय श्री मैफी]

परमश्रेष्ठको ऐसे अवसरपर, जब कि वे बहुत-से कठिन कार्योंमें व्यस्त हैं, कष्ट देते हुए मुझे दुःख होता है। किन्तु मेरा विचार है कि यह पत्र लिखकर मैं सेवा ही कर रहा हूँ। कहनेकी आवश्यकता नहीं कि मैं सर्वश्री मुहम्मदअली तथा शौकतअलीकी रिहाईके आन्दोलनका ध्यानपूर्वक अध्ययन करता रहा हूँ। जब मैं कलकत्तेमें ठहरा था, उनकी मातासे मिला था। उनसे मैंने अली भाइयोंकी स्थितिके बारेमें जानकारी प्राप्त की। उन्होंने मुझे पूर्ण विश्वास दिलाया कि उनके पुत्र ब्रिटिश राज्यके द्रोही नहीं हैं और सुधार-योजनामें अली भाइयोंका मन्तव्य ब्रिटिश सम्बन्धको स्थायी बनाये रखना है। मुस्लिम लीगके यहाँ होनेवाले अधिवेशनोंमें मैं जाता रहा हूँ और प्रमुख मुसलमानोंसे भी मैं मुक्त भावसे मिलता-जुलता रहा हूँ। यह मेरा दृढ़ मत है कि दोनों भाइयोंको लगातार नजरबन्द रखने और रिहा करनेसे इनकार करनेके कारण