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६४. पत्र : भगवानजी मेहताको

मोतीहारी
अगहन बदी १४ [जनवरी १, १९१८]

भाईश्री भगवानजी,

काठियावाड़का सवाल मेरे मनमें हमेशा बना ही रहता है।[१] अनुकूल समयकी बाट जोह रहा हूँ। कच्छ-काठियावाड़ मंडलकी हलचलोंमें मैं फिलहाल अपना योग नहीं देना चाहता; मुझे लगता है कि यह संस्था जो करना चाहती है उसका समय अभी आया नहीं है। मैंने अपना यह मत मंडलके व्यवस्थापकोंको भी बता दिया है।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ३०२६) से।

सौजन्य : नारणदास गांधी

६५. भाषण : अहमदाबादकी सभामें[२]

अहमदाबाद
जनवरी १, १९१८

आजका कार्य बड़े ही महत्त्वका है; क्योंकि यह स्वराज्यका ही कार्य है। इसमें हम किसी प्रकारकी अतिशयोक्ति नहीं कर रहे हैं। स्वराज्य अर्थात् स्वयं अपनेपर शासन करना। ऐसी सभा, जिसमें इस विषयपर विचार किया जा रहा हो कि यहाँकी नगरपालिका अपना काम ठीक ढंगसे चला रही है या नहीं, स्वराज्यकी ही सभा कहलायेगी। आजकी सभाका विषय जनताके स्वास्थ्यसे सम्बन्धित है। खुराकके तीन मुख्य तत्त्व हैं—हवा, पानी और अनाज। हवा तो मुफ्त मिलती है परन्तु यदि वह दूषित हो तो हमारे शरीरको नुकसान पहुँचाती है। वैद्योंका कथन है कि दूषित हवासे जितनी हानि होती है उतनी दूषित पानीसे नहीं होती। दूषित वायुके सेवनसे हमारा स्वास्थ्य खराब होता है और इसलिए हमें आबोहवा बदलनेकी जरूरत हो जाया करती है। उसके बाद दूसरा स्थान पानीका है। हम लोग पानीके बारे में बहुत लापरवाही करते हैं। यदि

 
  1. भगवानजी अनूपचंद मेहताका वीरमगाँवकी चुंगी और काठियावाड़की समस्याओंके बारेमें गांधीजीके साथ पत्र-व्यवहार चला आ रहा था, देखिए "पत्र : भगवानजी मेहताको", नवम्बर १, १९१७।
  2. इस सभाको आयोजित करनेका उद्देश्य अपर्याप्त और अनियमित जल-वितरण व्यवस्थाके विरुद्ध आवाज उठाना था। इसके अध्यक्ष गांधीजी थे।

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