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६६. पत्र : एक सार्वजनिक कार्यकर्त्ताको

[जनवरी ११, १९१८ के बाद]

मुझे तुम्हारा काम बहुत पसन्द आया। कमिश्नरने[१] अपना असली रूप एक पलमें दिखा दिया। मैं यह बात दोष दिखानेके उद्देश्यसे नहीं लिखता, अपितु भविष्य में तुम्हारे मार्गदर्शनके लिए लिखता हूँ कि जब कमिश्नरने पूरे शिष्टमण्डलसे मिलनेसे इनकार कर दिया था तब यदि मन्त्री भी अपने सम्मानकी रक्षा करते हुए उनसे न मिलते तो अधिक अच्छा होता...।[२] श्री प्रैटकी भूलसे जनताका काम बन जायेगा। यदि वे गुजरात सभाका तिरस्कार करना चाहते हैं तो करें।[३] यदि तुममें हिम्मत है, तो तुम निर्भयतापूर्वक लोक-पक्षका समर्थन करो और लोगोंको लगान अदा न करनेकी सलाह दो। यदि तुम इसमें गिरफ्तार कर लिये जाओगे तो माना जायेगा कि तुमने अपना काम पूरा कर दिया...। परिणामकी परवाह न करो। यही सत्याग्रह है। इतना निश्चित है कि हमें इसीसे पूर्ण आत्मसम्मान मिल जायेगा। अभी फिलहाल न मिले, यह सम्भव है। अवसर आनेपर अपनी शक्ति-भर सत्याग्रहकी महिमाको प्रदर्शित करना हमारा परम धर्म है।

[गुजरातीसे]
खेड़ा सत्याग्रह
 
  1. गुजरातके उत्तरी डिवीजनके कमिश्नर, एफ॰ जी॰ प्रैट।
  2. १९१७ में खेड़ा जिलेमें अतिवृष्टिसे फसल नष्ट हो गई थी। गुजरात सभाने, जिसकी स्थापना १८८४ में लोगोंके कष्ट सरकारके सामने रखनेके उद्देश्यसे की गई थी, किसानोंकी इस माँगका समर्थन किया कि लगान निर्धारित करनेके सम्बन्धमें जो काम हो रहा है उसे मुलतवी कर दिया जाये। पहली जनवरीको गुजरात सभाने बॉम्बे क्रॉनिकलको एक पत्र लिखा जिसमें उसने कुछ किसानोंको लगानमें छट देने और कुछका लगान मुलतवी करनेपर जोर दिया। गांधीजी इस समस्याका अध्ययन करनेके उद्देश्यसे अहमदाबाद गये और उन्होंने सभाको, जिसके वे अध्यक्ष थें, सलाह दी कि जबतक बम्बई सरकारकी ओरसे उत्तर नहीं मिल जाता वह लोगोंसे तबतक लगान अदा न करनेकी बात कहे। उन्होंने सभाको कमिश्नरके पास एक शिष्टमण्डल भेजनेका सुझाव भी दिया। १० जनवरीको सभाने कमिश्नरसे मुलाकात माँगी। जब शिष्टमण्डल कमिश्नरके कार्यालयमें गया तब कमिश्नरने केवल मन्त्रियों—कृष्णलाल देसाई और जी॰ वी॰ मावलंकर—से ही मिलना स्वीकार किया। गांधीजीको इस बातकी सूचना तारसे दे दी गई थी।(देखिए नरहरि परीख द्वारा लिखित सरदार वल्लभभाई पटेल, खण्ड १, पृष्ठ ४८-५५)।
  3. भेटमें कमिश्नरने कहा था कि वे सम्भवतः सरकारसे सभाको गैर-कानूनी घोषित करनेकी सिफारिश करेंगे।