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६७. पत्र : एक सार्वजनिक कार्यकर्त्ताको

[जनवरी ११, १९१८ के बाद]

तुम्हारा पत्र और तार मिले। उनसे मुझे बहुत सान्त्वना मिली। हाथमें लिये हुये कामको बिलकुल न छोड़ना। असलमें तुम्हें मेरी अथवा किसी अन्य व्यक्तिकी कोई आवश्यकता नहीं है। जो लोग लगान देने में असमर्थ हैं, सरकार उनकी असमर्थताको स्वीकार करे अथवा न करे, असमर्थता तो रहेगी ही। फिर वे लगान क्यों दें? आपको लोगोंको इतना ही समझाना है। चाहे एक ही व्यक्ति दृढ़ रहे, वह विजयी माना जायेगा। इससे हम नई फसल खड़ी कर सकते हैं। तुम अपना काम निर्भय होकर करना।

[गुजरातीसे]
खेड़ा सत्याग्रह

६८. उत्तर : शिक्षकोंके शिष्टमंडलको[१]

साबरमती आश्रम
जनवरी १३, १९१८ से पूर्व]

मैं आप लोगोंमें से उनको जो नौकरीकी तलाशमें हैं, फिलहाल दो तरहके काम दे सकता हूँ—एक तो सत्याग्रह आश्रमकी इमारत बनानेका काम जो शुरू होनेवाला है। नौकरी चाहनेवालोंमें से यदि कोई व्यक्ति इस प्रकारका काम करना चाहें तो मैं उनके द्वारा की गई ऐसी सहायताको बहुत मूल्यवान मानूँगा। उन्हें मैं १५ रु० मासिक वेतन दे सकता हूँ। इससे मुझे यह भी लगता है कि यदि आश्रमकी इमारतका निर्माण ऐसी भावनावाले व्यक्तियोंके योगसे हो तो वे स्वयं प्रशंसाके पात्र बनेंगे और आश्रमका महत्त्व भी बढ़ेगा। एक दूसरा भी काम है जिसकी व्यवस्था मैं कर सकता हूँ; जितने व्यक्ति स्वदेशी धंधोंकी उन्नति चाहते हों, उन्हें हाथ-करघेपर कपड़ा बननेका काम मुफ्त सिखा सकता हूँ। इतना ही नहीं—जितने सूतकी आवश्यकता पड़ेगी उतना सूत भी दूँगा; और जो कपड़ा तैयार होगा उसकी बिक्री करा दूँगा। इसलिए जिनकी रुचि इस ओर हो वे मुझे सूचित कर दें। मेरे खयालमें इस प्रकारका काम स्वार्थ-साधनके साथ-साथ अच्छी खासी देशसेवा कर सकनेका अत्युत्तम साधन है।

[गुजरातीसे]
गुजराती, १३-१-१९१८
 
  1. पत्रकी रिपोर्टके अनुसार इन शिक्षकोंने गांधीजीसे कहा था कि उन्होंने जनवरी १, १९१८ से अपनी नौकरियोंसे इस्तीफे दे दिये हैं और उनमें से कुछ गांधीजीकी मददसे स्वदेशी धंधे शुरू करना चाहते हैं।