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७०. पत्र : चिमनलाल चिनाईवालाको

[मोतीहारी]
पौष सुदी १ [जनवरी १३, १९१८]

भाईश्री चिमनलाल (चिनाईवाला)

आपका पत्र मिला। मजदूर-वर्ग मात्रको मदद देना हमारा काम है, इसमें मुझे कोई शक नहीं। वर्तमान सहकारी आन्दोलनमें मेरी श्रद्धा कम ही है। मुझे लगता है कि हमारा प्रथम कार्य मजदूरोंकी स्थितिका सूक्ष्म अध्ययन करना है। वे क्या कमाते हैं? कहाँ रहते हैं? कैसे रहते हैं? कितना खर्च करते हैं, कितना बचाते हैं? कितना कर्ज करते हैं? उनके कितने बच्चे हैं? उनका पालन-पोषण वे किस तरह करते हैं? शुरूमें वे क्या करते थें? उनकी स्थितिमें परिवर्तन कैसे हुआ? अब उनकी हालत कैसी है?—इन सब प्रश्नोंका उत्तर प्राप्त किये बिना एकाएक सहकारी समिति बनाना मुझे तनिक भी उचित नहीं लगता। हमें इस वर्गमें प्रवेश करनेकी जरूरत है। ऐसा करें, तो बहुत-सी उलझनें बहुत कम समयमें ही सुलझाई जा सकती हैं। अभी तो मैं तुम्हें उनमें घुलने-मिलने और उनकी स्थिति जाननेकी सलाह देता हूँ। अधिक बातें मिलने पर करेंगे।

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४

७१. पत्र : ई॰ एल॰ एल॰ हैमंडको

मोतीहारी
जनवरी १४, १९१८

सेवामें

श्री ई॰ एल॰ एल॰ हैमंड
सचिव
प्रान्तीय भर्ती निकाय
बिहार और उड़ीसा

प्रिय श्री हैमंड,

मैं आपके दिसम्बरमें प्राप्त बिना तारीखके पत्रका उत्तर जल्दी नहीं दे सका, इसके लिए क्षमा चाहता हूँ। बात यह है कि मैं चम्पारनसे बाहर सफरमें था। मैं अभी इस १२ तारीखको ही लौटा हूँ। इस समय मेरी कठिनाई यह है कि जबतक