किसानों और जमींदारोंके सम्बन्धोंकी स्थिति अनिश्चित है तबतक मैं आगे नहीं बढ़ सकता। कृषीय-विधेयक इस समय परिषद् में है। यह जब पास हो जायेगा तब मेरा रास्ता कुछ ज्यादा साफ हो जायेगा। तब मैं आपके सुझावको कार्यान्वित करनेका प्रयत्न करूँगा और देखूँगा कि क्या किया जा सकता है।
हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी
सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज़ मूवमेंट इन चम्पारन,
७२. पत्र : मथुरादास त्रिकमजीको[१]
मोतीहारी
जनवरी १४, १९१८
ऐसा प्रतीत होता है कि यदि इस अनुवादको हम जनताके सामने रखेंगे तो अन्याय ही होगा। इसलिए इसपर खर्च किया गया रुपया बरबाद ही हुआ; फिर भी हमारे पास कोई दूसरा प्रामाणिक मार्ग है ही नहीं। फिलहाल इतना ही निर्णय पर्याप्त है। इस अनुवादको यों ही पड़ा रहने दिया जाये, जिल्द न बँधाई जाये। दूसरे और तीसरे भागोंको प्रथम खण्डके रूपमें प्रकाशित कर सकते हैं...[२] अनुवादकी गुजराती भाषा सरल, स्वाभाविक, व्याकरण सम्बन्धी दोषोंसे मुक्त और ऐसी होनी चाहिए कि वह साहित्य-भण्डारमें अच्छा स्थान पा सके। इस अनुवादमें उपर्युक्त गुणोंमें से एक भी गुण नहीं दीख पड़ रहा है।... मैं देखता हूँ कि तुमने उस अनुवादके प्रूफोंको पढ़ने में बहुत परिश्रम किया है। हमारा ध्येय यह होना चाहिए कि शुद्धिपत्र न छापना पड़े और किताबमें अशुद्धियाँ हों ही नहीं।
बापूनी प्रसादी