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पत्र : देवदास गांधीको

हो, उचित रूपमें शोक मनानेका एक ही मार्ग है, और वह यह है कि वे और भी अधिक सेवापरायण बनें ।

आपका,
मोहनदास गांधी

[ मराठीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४

१२०. पत्र : देवदास गांधीको

[ साबरमती ]
फरवरी १६, १९१८

चि० देवदास,

यहाँ एक दिनके लिए आया था; उसके बजाय महीनाभर होता आता है। आज दिल्ली जानेका विचार था, लेकिन अब खेड़ाके कामसे नडियाद जाना पड़ेगा। अगर यहाँ से चला जाऊँ, तो हजारों लोगोंका बड़ा नुकसान हो जाये । लोग दब जायें और बिलकुल हताश हो जायें। ऐसी स्थितिके कारण अभी तो रुक गया हूँ । उम्मीद तो है कि में यहाँसे दस दिनमें छूट सकूँगा । तुम्हारी याद हमेशा आती है। मैं जानता हूँ कि तुममें लगन है और तुम सब बातोंमें रस ले सकते हो। तुम यहाँ होते, तो सत्य की महिमा और प्रभाव क्षण-क्षणमें देखते। तुम्हारे लिए मेरे पास यही विरासत है। मैं मानता हूँ कि वह अटूट है। जो पहचान ले, उसके लिए यह अमूल्य है । वह दूसरी कोई विरासत न माँगेगा और न चाहेगा। मैं यह समझता हूँ कि तुम इस विरासतको पहचान सके हो और इसके प्रेमी हो । आज मुझे सपना आया कि तुमने मुझे धोखा दिया है। तुमने पेटीमें से नोट चुराकर उन्हें भुना लिया और मौज-शौकमें खर्च कर दिया। मुझे पता लगा तो मैं घबराया और बहुत व्याकुल हुआ। इतनेमें नींद खुल गयी और मैंने देखा कि यह तो सपना है। मैंने ईश्वरका उपकार माना। मेरा सपना तुम्हारे प्रति मेरी आसक्तिका सूचक है। तुम तो यह आसक्ति चाहते हो। तुम्हें इसका कोई विशेष भय नहीं मानना चाहिए कि यह आसक्ति इस जन्ममें बिलकुल चली जायेगी। मैं सबके प्रति समभाव रखनेका भारी प्रयत्न कर रहा हूँ, किन्तु तुमसे अन्योंकी अपेक्षा अधिक प्राप्त करनेकी आशा तो रहती ही है।

चि० छोटालाल और चि० सुरेन्द्रको अलग पत्र नहीं लिख रहा हूँ। तुम इसे उन्हें पढ़वाना चाहो, तो पढ़वा सकते हो या तुम उन्हें इसमें के समाचार दे देना। यहपिता-पुत्रके पवित्र सम्बन्धको ध्यानमें रखकर लिखा गया है; इसलिए यह तुम्हारे लिए ही संग्रहणीय है। तुम इस कारण इसे उन्हें न पढ़वाओ, तो भी कोई हर्ज नहीं ।

बापूके आशीर्वाद

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४


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