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१२१. गोखले और उनका महामंत्र

[फरवरी १९, १९१८ के पूर्व ]

गोखलेकी पुण्यतिथिके अवसरपर उस स्वर्गीय महात्माके भाषणोंका अनुवाद प्रकाशित करनेकी बात पहले-पहल मुझे ही सूझी थी इसलिए एक तरहसे यह ठीक ही है कि इस पहले खण्डकी प्रस्तावना में ही लिखूं । हमने माना है कि गोखलेकी पुण्यतिथि हम हर साल मनाते रहेंगे। [मामूली रिवाजके अनुसार ] हर बार भजन-कीर्तन करके और भाषण देकर सभा विसर्जित कर देनेसे अकसर समयका व्यय-मात्र होता है; उससे किसीका कोई लाभ नहीं होता । भाषणोंकी अपेक्षा कार्यका महत्त्व बढ़े और ऐसे आयोजनोंसे लोग प्रतिवर्ष कुछ ठोस लाभ उठा सकें, इस विचारसे गत वर्षं पुण्यतिथिके प्रबन्ध-कर्त्ताओंने इसअवसरपर मातृभाषामें कोई उपयोगी पुस्तक प्रकाशित करनेका निश्चय किया। उसके साथ ही उन्होंने पुस्तकका चुनाव भी कर डाला; जैसा कि स्वाभाविक है उन्होंने इसके लिए स्वर्गीय महात्माके भाषणोंका संग्रह प्रकाशित करना तय किया ।

हरएक यह चाहता था कि अनुवाद ऐसा आदर्श होना चाहिए कि गुजराती साहित्यमें उसका एक विशिष्ट स्थान हो और इस महापुरुषके पवित्र वचन मूलमें जैसे भव्य हैं हमारी भाषामें भी उनकी वह भव्यता सुरक्षित रहे, फिर चाहे इसके लिए कितना ही प्रयत्न क्यों न करना पड़े। यह काम ऐसा नहीं था कि पैसा देकर कराया जा सके; इसे तो कोई स्वयंसेवक ही कर सकता था। ऐसे स्वयंसेवक तो हमें मिल गये किन्तु यह तो भविष्य ही बतायेगा कि वह जैसा हम चाहते थे वैसा हुआ है या नहीं। यह प्रस्तावना जिस भागकी है उसके अनुवादक रा० रा० महादेव हरिभाई देसाई हैं। यहाँ उनका विशेष परिचय देनेकी आवश्यकता नहीं है। इतना ही कहना बस है कि वे गुजराती साहित्यके प्रेमी हैं, विषय उनके लिए अज्ञात नहीं था और स्वर्गीय महात्माके हजारों पुजारियोंमें वे भी एक हैं। अपना कार्य उन्होंने अत्यन्त उत्साह और प्रेमभावसे किया है इसलिए यह आशा की जा सकती है कि यह अनुवाद गुजराती साहित्यमें स्थान प्राप्त करेगा ।

गत वर्षकी पुण्यतिथिके अवसरपर ज्यों ही बम्बईकी होमरूल लीगको यह खबर मिली कि पुस्तक प्रकाशित करनेका प्रस्ताव किया जानेवाला है त्यों ही उसके मन्त्रियोंने [ इस कार्य के लिए ] उदार सहायता देनेका तार किया और बादमें इसके लिए तीन हजार रुपयेकी बड़ी रकम भी मंजूर की। अतः व्यवस्थापक-मण्डलको द्रव्य इकट्ठा करने की कोई चिन्ता नहीं करनी पड़ी और इस महँगाईके कालमें भी पुस्तककी छपाई, कागज, आवरण इत्यादिमें सुन्दरताका निर्वाह करनेकी उसकी इच्छा आसानीसे पूरी हो गई। इस उदारताके लिए होमरूल लीग हमारे धन्यवादकी पात्र है ।

ऊपर जो कुछ कहा गया है वह तो प्रस्तावनाकी प्रस्तावना हुई। असली प्रस्ताव नाके रूपमें तो हमें इस स्वर्गीय महापुरुषके विषयमें कुछ लिखना चाहिए, किन्तु