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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

समय अन्ततक मेरी यह कहनेकी हिम्मत न हुई कि दक्षिण आफ्रिकाके विषय में एक प्रस्ताव मेरी जेबमें ही पड़ा हुआ है। रात तो मेरे लिए रुकनेवाली नहीं थी। नेता काम समाप्त कर डालनेके लिए अधीर हो रहे थे। ये लोग अभी उठ जायेंगे, इस डरसे मेरा जी काँप रहा था । गोखलेको भी याद दिलानेकी मेरी हिम्मत नहीं होती थी। इतनेमें वे बोल उठे, “गांधीके पास दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके विषयमें एक प्रस्ताव है, उसपर हमें विचार करना पड़ेगा[१]मेरे आनन्दका पार नहीं रहा। कांग्रेस का यह मेरा पहला अनुभव था, इसलिए कांग्रेसमें पास होनेवाले प्रस्तावोंकी कीमत मेरी नजरमें बहुत थी। इसके बाद भी अनेक स्मरणीय प्रसंग हैं और वे सब पवित्र हैं। परन्तु अभी तो जिसे मैंने उनका महामंत्र माना है, उसका वर्णन करके ही प्रस्तावना पूरी करना उचित मालूम होता है।

इस कठिन कलिकालमें शुद्ध धर्मवृत्ति विरली ही जगह देखनेमें आती है। ऋषियों,मुनियों, साधुओं आदिके नामसे जो लोग आज हमें भ्रमण करते हुए दिखाई देते हैं,उनमें यह वृत्ति शायद ही कभी दिखाई पड़ती हो । यह तो सभी देख सकते हैं कि धर्मके कोषकी चाबी उनके पास नहीं है। धर्म क्या है, इसे भक्त शिरोमणि कवि नरसिंह मेहताने एक ही सुन्दर वाक्यमें बहुत अच्छी तरह प्रकट किया है। वे कहते हैं :

‘ज्यां लगी आतमा-तत्व चीन्यो नहीं, त्यां लगी साधना सर्व जूठी।[२]

यह अपने अनुभव-सागरमें से निकला हुआ उनका वचन है। इससे हमारी समझम आ जाता है कि महातपस्वी या योगकी सारी क्रियाएँ जाननेवाले महायोगीमें भी हमेशा धर्मका वास नहीं होता। गोखलेने इस आत्म-तत्त्वको भली-भाँति पहचान लिया था, इस विषयमें मुझे जरा भी शंका नहीं है। उन्होंने धर्मका दिखावा कभी नहीं किया, पर उनका जीवन धर्ममय था । प्रत्येक युगमें मोक्षकी ओर ले जानेवाली कुछ प्रधान प्रवृत्तियाँ दिखाई पड़ती हैं। जब-जब धर्मकी शिथिलता दिखाई देती है, तब-तब ऐसी ही किसी प्रधान प्रवृत्तिके जरिए धर्म-जागृति होती है। ऐसी प्रवृत्ति हमेशा तत्कालीन वातावरणके अनुरूप हुआ करती है। इस समय हम अपनी राजनीतिक स्थितिमें अपनी अवनत दशाका अनुभव करते हैं। अपूर्ण विचारके कारण हम ऐसा मान लेते हैं कि राजनीतिक स्थिति सुधरते ही हमारी उन्नति होगी। लेकिन यह धारणा अंशतः ही सही है। यह ठीक है कि जबतक राजनीतिक स्थिति नहीं सुधरती तबतक हमारी उन्नति नहीं हो सकती। लेकिन राजनीतिक स्थितिमें चाहे जिस तरहके साधनोंसे परिवर्तन हो, उन्नति ही होगी, ऐसी बात नहीं है। इस परिवर्तनको लानेवाले साधन यदि दूषित हों, तो परिवर्तनसे उन्नतिके बजाय अवनति होनेकी ही अधिक सम्भावना है। राजनीतिक स्थितिमें शुद्ध साधनों द्वारा लाया हुआ परिवर्तन ही हमें उच्च मार्गकी ओर ले जा सकता है। यह गोखलेने अपने सार्वजनिक जीवनके आरम्भमें केवल समझ ही नहीं लिया था, बल्कि इस सिद्धान्तपर अमल भी


  1. प्रस्ताव पेश करते हुए गांधीजीने जो भाषण दिया था उसके लिए देखिए खण्ड पृष्ठ २२९-२३२
  2. जहाँतक आत्म-तत्त्वको नहीं पहचाना, सारी साधना व्यर्थ है।