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भाषण : भगिनी समाज, बम्बईमें

शक्तिमें अपना अविश्वास छोड़ सकें तो यह कार्य कुछ कठिन नहीं है। मैं कहता हूँ कि हमारे देशके स्त्री-पुरुष अंग्रेजी भाषा पढ़ने के लिए कम समय दें। मेरे कहनेका हेतु यह नहीं है कि उनको कम आनन्द मिले; बल्कि यह है कि जिस आनन्दको अंग्रेजी पढ़नेवाले बहुत कष्ट सहकर प्राप्त करते हैं वह आनन्द हमें सुगमतासे प्राप्त हो सके। इस संसार में अनेक अमूल्य रस भरे हुए हैं। सभी साहित्य संबंधी रत्न अंग्रेजी भाषामें ही नहीं हैं, अन्य भाषाओंमें इन रत्नोंकी बहुलता है । ये सभी हमारे देशके आम लोगोंके लिए उपलब्ध होने चाहिए। इसका मार्ग एक ही है और वह यह है कि हममें से कुछ लोग, जिनमें उचित सामर्थ्य हो, उन-उन भाषाओंको सीखकर उनके उन रत्नोंको हमारी भाषाके द्वारा हमें उपलब्ध करायें ।

हमने यहाँ इतना विचार शिक्षा-प्रणालीके सम्बन्धमें किया। इससे बालिकाओंके विवाह होने बन्द हो गये और स्त्रियोंको उनके स्वाभाविक अधिकार मिल गये, यह माननेका कोई कारण नहीं है। इसलिए जो बालिकाएँ विवाहके पश्चात लुप्त हो जाती हैं उनके सम्बन्ध में कुछ कहें। वे अब अपनी शालाओंमें न आयेंगी। एक बार बाल-विवाहका पाप करनेके बाद उनकी माताएँ भी अपने पापका ज्ञान होनेपर उन बालिकाओंको शिक्षा दिलाने अथवा कोई अन्य आश्वासन देनेमें असमर्थ हो जाती हैं। जो पुरुष बालिकाके साथ विवाह करता है वह परोपकार भावनासे नहीं, बल्कि बहुत कुछ विषयासक्तिके वशीभूत होकर करता है। इन बालिकाओंकी रक्षा कौन करे ? इस प्रश्नमें स्त्रियोंके उद्धारका कार्य बहुत कुछ आ जाता है। इसका उत्तर कठिन, किन्तु एक ही है। पुरुषके अतिरिक्त इनका सांसारिक रक्षक कोई अन्य नहीं है। बालिकासे विवाह करनेवाले पुरुषको, उसकी पत्नी ही समझा सके, यह लगभग असम्भव है । इसलिए यह अति कठिन सुधार कार्य समझदार पुरुषको करना है। यदि मुझमें इतनी शक्ति हो तो मैं इन बालिका वधुओंकी एक सूची बनाऊँ, उनके पतियोंके मित्रोंको खोजूँ और उनके मारफत एवं जो भी अन्य धर्मानुकूल और विनययुक्त कदम मुझे सूझें, उन्हें उठाकर ऐसे पतियोंको मैं यह कहलाऊँ : आपने अज्ञानवश एक बालिकासे विवाह करनेका पाप किया है। जबतक इस बालिकाकी अवस्था परिपक्व नहीं हो जाती और जबतक यह शिक्षा प्राप्त नहीं कर लेती, तबतक आप शुद्ध ब्रह्मचर्यका पालन करके इसे स्वयं शिक्षा देकर अथवा अन्य किसीकी मारफत शिक्षा दिलाकर संतान उत्पन्न करने और उसका पालन-पोषण करने योग्य नहीं बना लेते तबतक आप इस पापसे किसी भी प्रकार मुक्त न हो सकेंगे ।

इस प्रकार भगिनी समाज निश्चय करे तो उसके सम्मुख बहुतसे कार्यक्षेत्र पड़े हैं जिनमें कार्य करनेसे सुन्दर फल उपलब्ध हो सकते हैं। उसका यह कार्यक्षेत्र इतना विस्तृत है कि यदि संकल्पपूर्वक कार्य किया जाये तो बड़ा आन्दोलन उसके सम्मुख कुछ भी न रहे एवं स्वराज्य शब्दका उच्चारण किये बिना ही उस दिशामें बहुत बड़ी सेवा हो जाये । जब छापेखाने नहीं थे और भाषणोंकी सुविधा भी कम थी, जब चौबीस घंटे में एक हजार मीलके बजाय लोग केवल २४ मीलकी ही यात्रा कर सकते थे, तब अपने विचारोंके प्रचारका एक ही मुख्य साधन होता था । वह था हमारा कर्म; और उसका प्रभाव बहुत होता था। अब हम वायुके वेगसे दौड़ रहे हैं, भाषण दे रहे हैं और लेख लिख रहे हैं। उसके बावजूद हम अपने विचारोंपर अमल करवाने में लगभग असमर्थ रहते हैं। हर ओरसे