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पत्र : शुएब कुरैशीको

हैं, वे अन्तमें सुख देनेवाली होती हैं । यह दुःखकी बात है कि हमें पेटभर खानेको भी नहीं मिलता । फिर भी अपने अज्ञानके कारण हम इस दुःखको सहते हैं, और जैसे-तैसे जिन्दगीके दिन बिता देते हैं । इस दुःखको मिटानेके लिए हमने एक तरीका अख्तियार किया है : हम मालिकोंके सामने अपनी यह माँग पेश कर चुके हैं कि जो इजाफा हम चाहते हैं, उसके बिना हम अपना पेट भली-भाँति पाल नहीं सकते। अगर रोज-रोजकी इस भूखको मिटानेके लिए माँगा हुआ इजाफा हमें न मिले, तो हमें जानबूझ कर आज ही भूखके दुःखको सह लेना चाहिए। आखिर मालिक भी कबतक कठोर बने रहेंगे ?

६. आखिरी बात यह है कि गरीबोंका रक्षक भगवान् है । हमें समझ लेना चाहिए कि तदबीर करना हमारा काम है, फल हमें अपनी तकदीरके अनुसार मिल ही जायेगा । यह समझकर हमें भगवानपर भरोसा रखना चाहिए और जबतक हमारी दरखास्त मंजूर नहीं होती, हमें शान्तिपूर्वक अपनी बातपर मजबूती के साथ डटे रहना चाहिए।

जो मजदूर इस तरहका बरताव करेंगे, उन्हें अपनी प्रतिज्ञाके पालनमें कभी कठिनाई न आयेगी ।

तालाबन्दी के दिनोंमें मजदूर अपना समय किस प्रकार बितायें, इसका विचार कलकी पत्रिकामें किया जायेगा ।

[ गुजरातीसे ]
एक धर्मयुद्ध


१३४. पत्र : शुएब कुरैशीको

फरवरी २७, १९१८

प्रिय मित्र,

मुझे अपने पर शर्म आ रही है। में वहाँ पहुँच जानेको अत्यन्त उत्सुक हूँ, किन्तु घटनाओंने मेरे खिलाफ जैसे साजिश कर रखी है। हड़ताल अभी जारी ही है और परिस्थिति इतनी नाजुक है कि उसे छोड़कर कहीं भी जानेकी हिम्मत नहीं कर सकता । खेड़ाके मामलेमें भी लाखों आदमियोंके हकका सवाल है, इसलिए मुझे उसपर पूरा ध्यान देना ही पड़ेगा। मैं जानता हूँ कि अली भाइयोंके मामलेमें ढिलाई करना भी खतरनाक होगा। इसलिए यहाँके कामसे जबतक मुक्त नहीं हो जाऊँ, तबतक तो मुझे यहीं रहना है। मेरी समझमें यहाँके कामको बीचमें छोड़ दूँ, यह आप भी हरगिज नहीं चाहेंगे । क्या आप मेरी तरफसे मौलाना साहबसे माफी माँग लेंगे ? वहाँ जो कुछ हो रहा हो, उसकी मुझे जानकारी देते रहिए ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्यः नारायण देसाई