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१३६भाषण : अहमदाबाद के मिल मजदूरोंको सभामें



फरवरी २७, १९१८[१]

नेक सलाह देने और हिम्मतका सबक सिखानेवाले आपको कम मिलेंगे । पस्त हिम्मत करनेवालोंकी कमी न रहेगी। इनमें से कई आपके मित्र भी हो सकते हैं । खुदाके नामपर जितना मिल जाये, उतना ले लेनेकी सलाह देनेवाले भी आपको बहुतेरे मिलेंगे। उनकी ऐसी सलाह यों सुनने में बहुत मीठी हो सकती है, लेकिन दरअसल उससे कड़वी कोई सलाह नहीं हो सकती। हमें परमात्माको छोड़ और किसीके सामने अपनी दीनता नहीं दिखलानी है । यह कोई जरूरी नहीं कि गरीबीके कारण हम अपनेको दीन ही समझें । भगवान्ने हाथ-पैर तो हममें से हरएकको दिये हैं। उनका उपयोग करके ही हम स्वराज्यका आनन्द उठा सकेंगे । मालिकोंके साथ अच्छी तरह रह सकनेके लिए हमें दृढ़ बननेकी जरूरत है। आज जिस हालत में हम पड़े हुए हैं, उसे देखते हुए हमें अपने मालिकोंसे यह कहना चाहिए कि हम उनका यह दबाव बरदाश्त नहीं कर सकते । आप मेरी सलाहपर चलें या किसी औरकी सलाहपर, इतना मैं आपसे कह सकता हूँ कि इस मामलेमें तो मेरी या दूसरे किसीकी सलाह और सहायताके बिना भी आप विजयी बन सकेंगे। यों, मेरी या दूसरे लाखों आदमियोंकी मदद पाकर भी आप जीत नहीं सकते, क्योंकि आपकी जीतका आधार आपके ही ऊपर है। आपकी ईमानदारी, ईश्वरमें आपकी आस्था और श्रद्धा, तथा आपकी हिम्मत ही आपको विजयी बना सकती है । हम तो सिर्फ आपकी सहायता कर सकते हैं; आपको टेका या सहारा दे सकते हैं; लेकिन खड़ा तो खुद आप ही को होना पड़ेगा। बिना लिखे और बिना बोले जो प्रतिज्ञा आपने की है, उसपर डटे रहिए और यकीन रखिए कि जीत आपकी ही है ।

इस दिनकी पत्रिकाका मर्म समझाते हुए गांधीजीने कहा :

यदि आप पहलेसे ही हार मानकर बैठ जाते, तो मुझे या अनसूया बहनको आपके पास आनेकी कोई जरूरत न रह जाती। लेकिन आपने तो लड़ लेनेका निश्चय किया । और अब यह बात सारे हिन्दुस्तानमें फैल गई है। आगे चलकर दुनिया भी सुनेगी कि अहमदाबादके मजदूरोंने ईश्वरको साक्षी रखकर इस बातकी शपथ ली है कि जबतक उनकी अमुक माँग पूरी न होगी, वे कामपर नहीं लौटेंगे । भविष्यमें आपके बाल-बच्चे इस पेड़को देखकर कहेंगे कि इसीकी छायामें बैठकर हमारे माता-पिताओंने परमात्माकी साक्षीमें कठिन प्रतिज्ञाएँ की थीं। यदि आप उन प्रतिज्ञाओंका पालन न करेंगे, तो वे बच्चे आपके बारेमें क्या सोचेंगे ? आपपर आपके बाल-बच्चोंकी आशाएँ निर्भर करती हैं। में आपमें से हरएकको चेताता और कहता हूँ कि खबरदार ! किसीके बहकाने या फुसलाने में आकर ली हुई टेक न छोड़ना; प्रतिज्ञासे मुँह न मोड़ना; उसपर दृढ़तापूर्वक अड़े रहना । आपको भूखों मरना।

१४-१४
 
  1. यह भाषण तालाबन्दीके छठे दिन दिया गया था ।