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पत्र : एफ० जी० प्रेटको

है उनको आपकी सत्ता असह्य है । उनकी शक्ति दिन दूनी बढ़ती जा रही है। लोगोंको सिविल सर्विसकी हुकूमतका भयोत्पादक पहलू दिखाने में उन्हें किसी तरहकी कठिनाई नहीं होती । लोग उन्हें अपना मुक्तिदाता समझकर उनका स्वागत करते हैं । मातृभूमिके प्रेम और अधिकारियोंके प्रति अपने अविश्वाससे प्रेरित होकर, वे जनतामें वैमनस्यके बीज बोते हैं । जिस तन्त्र के आप प्रतिनिधि हैं, वह इस चीजको अच्छी तरह जानता है और स्वाभाविक ही है कि इस अपमानपर उसे क्रोध आता है। इस प्रकार दोनोंके वीचका अन्तर बढ़ता जा रहा है। में यह माननेकी धृष्टता करता हूँ कि इस खाईको मैं पाट सकता हूँ और नई व्यवस्था आनेसे पहले होनेवाली दुःखद अव्यवस्थाको रोकने में सफल हो सकता हूँ। मैं चाहता हूँ कि अन्तमें परस्पर अविश्वास और जबरन लादी हुई हुकुमत के बजाय परस्पर विश्वास और प्रेमके शासनकी स्थापना हो । मैं यह चीज लोगोंको तभी बता सकता हूँ, जब उन्हें अन्यायको दूर करनेका अधिक अच्छा और ज्यादा कारगर उपाय बता सकूँ। यह तो स्पष्ट ही है कि भयके कारण उनका अन्यायपूर्ण आज्ञाओंके सामने सिर झुकाना और मनमें द्वेष भाव बढ़ाते रहना बुरा है । वे गलत रास्ते जायें और हिंसाका आश्रय लें, यह उससे भी ज्यादा बुरा है । लोगोंके लिए अपनी नाराजगी दिखानेका गरिमापूर्ण, वास्तव में राजभक्तिपूर्ण और उनकी भी उन्नति करनेवाला मार्ग यही है कि आपके जो हुक्म उन्हें अन्यायपूर्ण मालूम हों, उनको भंग करके वे अपनी असहमति जाहिर करें और इस आज्ञा—भंगकी जो सजा हो, उसे समझ-बुझकर सादर सहन कर लें । मेरा तो खयाल है कि हर प्रकारके अन्यायमें यही सलाह लोगोंको बिना किसी आशंकाके दी जा सकती है; और खासकर जब इससे पहले अन्याय दूर करनेके अन्य सभी उचित उपाय आजमाये जा चुके हों। मैं चाहता हूँ कि जो दृष्टिकोण मैंने पेश किया है, उसे आप समझ लें। मैंने आपको यह पत्र लिखनेकी जो धृष्टता की है, मैं जानता हूँ कि आप मुझे उसके लिए अवश्य क्षमा कर देंगे। अलबत्ता मैंने यह पत्र खेड़ाके सवालको अलग रखकर आपको लिखा है। बहुत सम्भव है कि मुझे कई ऐसे मामलोंमें जिनमें कोई मतभेद न हो आपके साथ मिलकर काम करनेका सौभाग्य प्राप्त हो । मैं समझता हूँ कि ज्यादा अच्छा यही रहेगा कि आप सभी चीजोंके बारेमें मेरे विचार जान लें ।

आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी से ।
सौजन्य : नारायण देसाई