पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/२४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

१४०. भाषण : अहमदाबाद के मिल मजदूरोंकी सभामें

फरवरी २८, १९१८

पत्थर तोड़नेसे जो गरमी और ताकत आती है, वह कलम पकड़नेसे नहीं आ सकती ।[१]

[ गुजरातीसे ]
एक धर्मयुद्ध

१४१. अहमदाबादके मिल मजदूरोंकी हड़ताल

मार्च १, १९१८

पत्रिका - ४

हमने यह तो देख लिया कि मजदूर अपनी प्रतिज्ञा किस तरह पालें और तालाबन्दी के दिनोंमें अपना समय किस प्रकार बितायें। अब इस पत्रिकामें यह बताना है कि हम उनकी क्या मदद करेंगे। मजदूरोंको हमारी प्रतिज्ञा जाननेका अधिकार है और हमारा फर्ज है कि हम उन्हें अपनी प्रतिज्ञा बतायें ।

पहले हम यह देख लें कि हमसे क्या नहीं हो सकेगा :

१. हम मजदूरोंको उनके किसी गलत काममें मदद नहीं पहुँचायेंगे ।

२. अगर मजदूर कोई गलत काम करते हैं, उचितसे अधिक माँगते हैं, या किसी भी तरहका दंगा-फसाद करते हैं, तो हमारा फर्ज हो जाता है कि हम उन्हें छोड़ दें, और उनको मदद पहुँचाना बन्द कर दें ।

३. हम मालिकोंकी बुराई कभी नहीं चाह सकते; हमारे हरएक कार्य में उनके हितका विचार भी रहता ही है । मालिकोंके हितकी रक्षा करके हम मजदूरोंका हित साधेंगे ।

अब हम क्या मजदूरोंके लिए करेंगे सो देखिए :

१. मजदूरोंने जैसा सुन्दर व्यवहार आजतक किया है, वैसा ही जबतक वे कायम रखेंगे, हम बराबर उनका साथ देंगे ।

२. उन्हें ३५ फीसदीकी बढ़ोतरी दिलानेके लिए हम भरसक कोशिश करेंगे।

३. फिलहाल तो हम मालिकोंसे प्रार्थना ही कर रहे हैं। आम लोगोंकी सहानुभूति प्राप्त करने और लोकमतको जगानेकी कोशिश अभी हमने नहीं की है। लेकिन अवसर आनेपर हम सारे हिन्दुस्तानके सामने मजदूरोंकी स्थिति रखनेको तैयार हैं, और हमें आशा है कि हम आम जनताकी सहानुभूति अपनी ओर आकर्षित कर सकेंगे ।

  1. गांधीजीने यह वाक्य ता० २८ फरवरीके भाषण में पत्रिका - ३ के अन्तिम अनुच्छेदका विवेचन करते हुए कहा था । भाषणका बाकी हिस्सा उपलब्ध नहीं है ।