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पत्र: सर ई० ए० गेटको

४. जबतक मजदूरोंको उनका अधिकार प्राप्त न हो जायेगा, हम चैन नहीं लेंगे ।

५. मजदूरोंकी आर्थिक, नैतिक और शिक्षा-सम्बन्धी स्थितिको जाननेका प्रयत्न हम कर रहे हैं। हम उन्हें यह बतानेकी कोशिश करेंगे कि उनकी माली हालत कैसे सुधर सकती है; हम उनके नैतिक स्तरको उठानेकी कोशिश करेंगे, अगर वे गन्दे रहते हैं, तो हम सफाईसे रह सकनेके उपाय ढूँढ़ेंगे और उन्हें समझायेंगे; और वे अपढ़ हैं, तो हम इस बातका प्रबन्ध करेंगे कि उनको ज्ञान मिले - हम उसके लिए प्रयत्न और परिश्रम करेंगे ।

६. इस लड़ाई में जिन्हें भूखों मरनेकी नौबत आयेगी, या काम न मिल सकने के कारण बेकार रहना पड़ेगा, उनको खिलाकर हम खायेंगे और ओढ़ाकर हम ओढ़ेंगे ।

७. बीमार मजदूरोंकी सार-सँभाल करेंगे; उनके लिए डॉक्टरों और वैद्योंकी मदद प्राप्त करेंगे ।

हम अपनी जिम्मेदारीको समझकर इस काममें पड़े हैं। हम मजदूरोंकी माँगको बिल्कुल उचित समझते हैं और मानते हैं कि उसे पूरी करनेसे मालिकोंका कोई नुकसान नहीं, बल्कि अन्तमें लाभ ही होगा। इसलिए हमने इस कामको अपने हाथमें लिया है ।[१]

अगले अंक में हम मालिकोंकी स्थितिका विचार करेंगे ।

[ गुजरातीसे ][२]
एक धर्मयुद्ध


१४२. पत्र : सर ई० ए० गेटको

साबरमती
मार्च १, १९१८

सर ई० ए० गेट[३]

लेफ्टिनेंट गवर्नर बिहार तथा उड़ीसा

पटना

पिछले महीनेकी १८ तारीखका आपका कृपा-पत्र यहाँके मेरे पतेपर भेज दिया गया था।[४] एक-दो नाजुक से सवालोंके सिलसिले में गुजरातमें घूम-फिर रहा था ।

  1. महादेव देसाई अपनी पुस्तकमें कहते हैं कि इस पत्रिकामें कही गई हरएक बातका अक्षरशः पूरा-पूरा पालन हुआ था । देखिए एक धर्मयुद्ध, पृष्ठ ३ ।
  2. सर एडवर्ड अलबर्ट गेट; 'सिविल सर्विस' की अपनी सेवाके ३६ वर्षोंके दौरान विभिन्न पदोंपर और १९१५-२० के कालमें लेफ्टिनेंट गवर्नर रहे ।
  3. सर एडवर्ड अलबर्ट गेट; ' सिविल सर्विस' की अपनी सेवाके ३६ वर्षोंके दौरान विभिन्न पदोंपर और १९१५-२० के कालमें लेफ्टिनेंट गवर्नर रहे ।
  4. सर एडवर्ड गेटने लिखा था : "चम्पारन जाँच समितिकी सिफारिशोंको कार्यान्वित करनेके लिए कानून बनानेके सम्बन्धमें सर्वश्री नॉर्मन और हिल कहते हैं कि रैपतके साथ उनके कई मुकदमे चल रहे हैं जिनमें शरहबेशीकी वृद्धिको लेकर ही विवाद है । हमने मामलोंके बारेमें श्री स्लाइकी राय माँगी थी। उनका कहना है कि समितिमैं