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१४५. अहमदाबादके मिल मजदूरोंकी हड़ताल

मार्च २, १९१८

पत्रिका -५

हम अपनी स्थितिका विचार कर चुके । मालिकोंकी स्थितिपर विचार करना कठिन है। मजदूरोंकी हलचलके दो नतीजे हो सकते हैं :

१. मजदूरोंको ३५ प्रतिशत इजाफा मिले ।

२. मजदूरोंको इजाफा पाये बिना ही कामपर जाना पड़े । इजाफा मिलने से मजदूरोंका कल्याण होगा, और मालिकोंको यश मिलेगा। अगर मजदूरोंको इजाफा प्राप्त किये बिना ही कामपर जाना पड़ा, तो वे शौर्यहीन और गुलाम बनकर मालिकों की शरण जायेंगे । अतएव इजाफा मिलनेसे दोनों दलोंको लाभ होगा । मजदूरोंके लिए उनकी हार बहुत नुकसानदेह होगी ।

मालिकोंकी हलचलके भी दो नतीजे हो सकते हैं ।
१. मालिक मजदूरोंको इजाफा दें ।
२. मालिक मजदूरोंको इजाफा न दें ।

अगर मालिक मजदूरोंको इजाफा देंगे, तो मजदूर सन्तुष्ट होंगे, उन्हें न्याय मिलेगा । मालिकों को डर है कि मजदूरोंको मुँहमाँगा देनेसे वे सिरपर चढ़ जायेंगे। यह डर बेबुनियाद है । मुमकिन है कि मजदुर आज दब जायें, पर यह नामुमकिन नहीं कि वे मौका पाकर फिर सिर उठायें। यह भी मुमकिन है कि दबे हुए मजदूर मनमें दुश्मनी रखें। दुनियाका इतिहास बताता है कि जहाँ-जहाँ मजदूर दबाये गये हैं, वहाँ-वहाँ उन्होंने मौका पाकर मुखालिफत की है। मालिकोंका खयाल है कि मजदूरोंकी माँगको मंजूर कर लेनेसे उनपर उनके सलाहकारोंका प्रभाव बढ़ जायेगा। अगर सलाहकारोंका कहना सही है, और वे मेहनती हैं, तो मजदूर हारें या जीतें, वे अपने सलाहकारोंको न छोड़ेंगे; और इससे भी बढ़कर ध्यान देने लायक बात तो यह है कि सलाहकार भी मजदूरोंको कभी न छोड़ेंगे। जिन्होंने सेवा-धर्मको स्वीकार किया है, वे तो अपने उस धर्मको प्रति- पक्षियोंका विरोध होनेपर भी नहीं छोड़ेंगे । ज्यों-ज्यों वे निराश होंगे, त्यों-त्यों अधिक सेवा-परायण बनते जायेंगे । इसलिए मालिक कितनी ही कोशिश क्यों न करें, वे सलाहकारोंको मजदूरोंके सम्पर्कसे दूर नहीं रख सकेंगे। ऐसी हालतमें मजदूरोंको हराकर वे क्या पायेंगे? इसका यही एक उत्तर हो सकता है कि मजदूरोंके असन्तोषको छोड़ और कुछ उनके पल्ले न पड़ेगा । दबे हुए मजदूरोंको मालिक हमेशा शककी निगाहसे देखेंगे | मजदूरोंको माँगा हुआ इजाफा देकर मालिक उन्हें खुश कर सकेंगे। अगर मजदूर अपने फर्ज में चूकेंगे, तो मालिक हमेशा उनके सलाहकारोंकी मदद पा सकेंगे, और इस