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अहमदाबाद के मिल मजदूरोंकी हड़ताल

समय दोनों दलोंका जो नुकसान हो रहा है, उसे रोक सकेंगे। अगर मजदूर सन्तुष्ट हुए, तो वे हमेशा मालिकोंका आभार मानेंगे, और दोनोंमें बराबर प्रेम बढ़ेगा। इस प्रकार मजदूरोंकी सफलतामें ही मालिकोंकी भी सफलता है, और मजदूरोंकी हारमें मालिकोंकी भी हार है। इस सीधे-सच्चे न्यायके बदले मालिकोंने पश्चिमी अथवा आजकलका राक्षसी न्याय अपनाया है ।

यह न्याय कैसा है, इसका विचार हम अगले अंकमें करेंगे ।

[ गुजरातीसे ]
एक धर्मयुद्ध


१४६. अहमदाबाद के मिल मजदूरोंकी हड़ताल

[ मार्च ३, १९१८]

पत्रिका-६[१]

जिस न्यायमें सहानुभूति और दयाका भाव है, वह शुद्ध न्याय है । इसे हम हिन्दुस्तानवाले पूर्वी अथवा प्राचीन न्याय कहते हैं । जिसमें सहानुभूति या दयाका भाव नहीं रहता, उसे हम राक्षसी, पश्चिमी अथवा आजकलका न्याय कहते हैं। दया अथवा सहानुभूति के कारण अकसर बेटा बापके लिए और बाप बेटे के लिए बहुत-कुछ त्याग करता है, जिससे अन्तमें दोनोंको लाभ ही होता है। त्याग करनेवाला त्याग में एक प्रकारके शुद्ध अभिमानका अनुभव करता है, और इस तरह त्यागको वह अपनी कमजोरीकी नहीं, बल्कि ताकतकी निशानी समझता है । हिन्दुस्तानमें एक जमाना वह भी था, जब नौकर एक ही घरमें पीढ़ियों तक काम करते थे। जिस घरमें वे काम करते थे उसके कुटुम्बी समझे जाते थे और वैसा सम्मान पाते थे । वे अपने मालिकके दुःखसे दुःखी होते और मालिक उनके सुख-दुःखमें शरीक रहते थे। जब यह सब था, तब हिन्दुस्तानका सामाजिक जीवन बहुत सरल माना जाता था, और हजारों सालतक वह इसी तरीकेपर चलकर टिका रहा। आज भी इस भावनाका नाश नहीं हुआ है । जहाँ ऐसी व्यवस्था रहती है, वहाँ किसी तीसरे आदमीका या पंचका काम शायद ही कभी पड़ता है । मालिक और नौकर अपने आपसी झगड़ोंका फैसला आपसमें मिलकर कर लेते हैं। एक-दूसरेकी जरूरतको देखकर तनख्वाहें घटाने या बढ़ानेकी कोई बात इसमें थी ही नहीं । नौकरोंकी कमी देखकर न तो नौकर ज्यादा तनख्वाह माँगते थे, और न नौकरोंकी बहुलता देखकर मालिक उसे घटाते थे । इस पद्धतिमें पारस्परिक सद्भाव, औचित्य, शालीनता और प्रेमकी प्रधानता थी, और यह धर्म अव्यावहारिक नहीं माना जाता था, बल्कि आमतौर पर सबके ऊपर इसकी सत्ता चलती थी। हमारे पास इस बातके ऐतिहासिक प्रमाण

 
  1. १. पत्रिकाकी क्रमसंख्या ५ और ८ को महादेव देसाईने क्रमश : २ और ५ मार्चकी कहा है; तदनुसार संख्या ६ और ७ की पत्रिकाएँ ३ और ४ मार्चको प्रकाशित हुई होंगी ।