१४७. पत्र : मगनलाल गांधीको
अहमदाबाद
माघ वदी ५ [ मार्च ३, १९१८ ]
- सन्तोक और रामदास कल यहाँ आ गये। कल राजकोटके लिए रवाना होंगे ।
पूज्य खुशालभाई और नारणदासकी राय कृष्णा और परसोत्तमको भेजनेके पक्ष में नहीं है । इसलिए उन्हें भेजनेका विचार छोड़ दिया है। मुझे उनका खयाल ठीक लगा। अगर परसोत्तमको राजकोट भेजते हैं तो उसे मोरवी भी भेजना पड़ेगा । यदि कृष्णा आज राजकोट जाता है तो दूसरोंको दूसरी जगह भेजना चाहिए । अतः मुझे लगा कि सब बुजुर्ग लोगोंकी राय यदि ऐसी है तो तुम्हारी इच्छा होनेपर भी न भेजना ही...[१]
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७३३) से ।
१४८. एक पत्रका अंश[२]
मार्च ३, १९१८
...जीनेके लिए हम इतने अधिक व्यग्र रहते हैं कि मृत्युके अवसर और उसमें भी प्रियजनोंकी मृत्युके अवसर सदा भय उत्पन्न करते हैं। मुझे तो बहुत बार यही खयाल आया है कि ऐसे अवसर हमारी सच्ची परीक्षाके अवसर होते हैं । जिसे आत्माका तनिक भी भान हो, वह मृत्युका स्वरूप समझता है । वह वृथा शोक क्यों करे? ये विचार नये नहीं हैं; पर संकट के समय कोई उनका स्मरण कराये, तो उनसे सान्त्वना मिलती है। यह सान्त्वना आपको मिले, इसी उद्देश्यसे यह पत्र लिखा गया है।
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४