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१४९. मणिलाल गांधीको लिखे पत्रका अंश

मार्च ३, १९१८

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बिना समझे लोग मेरी पूजा करें, यह तो केवल परेशानीकी बात है । में जैसा हूँ, वैसा ही लोग मुझे जानें और फिर भी मेरा आदर करें, तो मैं उनका उपयोग लोकसेवामें कर सकता हूँ। मैं अपने धार्मिक विश्वासोंको दबाकर किसी भी प्रकारका सम्मान नहीं लेना चाहता । सदाचरण करते हुए मेरा सर्वथा तिरस्कार हो, तो उसका भी में स्वागत करूंगा ।...[१]

हम हजारों वस्तुओंकी इच्छा करते हैं, परन्तु उन सबको प्राप्त नहीं कर सकते । यह समझकर हमें अपना मन पूर्णतः शान्त रखना चाहिए ।

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४


१५०. अहमदाबाद के मिल मजदूरोंकी हड़ताल

मार्च ४, १९१८

पत्रिका – ७

दक्षिण आफ्रिका एक महान् अंग्रेजी उपनिवेश है। गोरे लोग वहाँ चार सौ सालसे बसे हुए हैं । उन्हें स्वराज्यका अधिकार प्राप्त है। वहाँकी रेलवेमें बहुतेरे गोरे मजदूर काम करते हैं। इन मजदूरोंके साथ वेतनके सम्बन्धमें कुछ अन्याय हो रहा था । इसपर मजदूरोंने केवल अपना वेतन [ बढ़वाने ]का विचार करनेके बजाय समूची राज्यसत्ता हथियानेका विचार किया । यह अन्याय था, राक्षसो न्याय था । इसके परिणामस्वरूप सरकार और मजदूरोंके बीच कटुता बढ़ी और दक्षिण आफ्रिकामें चारों ओर भयका वातावरण फैल गया। उन दिनों वहाँ कोई भी अपनेको सुरक्षित न समझता था। आखिर दिन- दहाड़े दोनों दलोंके बीच मार-काट मची और कई निर्दोष मनुष्य मारे गये । सारा प्रदेश फौजी सिपाहियोंसे घिर गया। दोनों दलोंका काफी नुकसान हुआ। दोनोंका इरादा एक- दूसरेको हरानेका था । शुद्ध न्यायकी किसीको परवाह न थी। दोनों एक-दूसरेकी चर्चा बढ़ा-चढ़ा कर करते थे । आपसी सद्भावकी चिन्ता किसीको न थी ।

 
  1. यहाँ मूलमें कुछ अंश छूटा हुआ है ।