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१५१. भाषण : अहमदाबाद के मिल मजदूरोंकी सभामें

मार्च ४, १९१८[१]

दक्षिण आफ्रिकामें यूरोपीय मजदूरोंकी हड़तालके कारण जिस समय आफ्रिकी सरकार संकटमें पड़ी हुई थी हमारे मजदूरोंने उस समय उसके संकटसे लाभ नहीं उठाया, बल्कि उस समय अपनी लड़ाई बन्द करके सरकारकी सहायता की और दुनियामें नाम कमाया; उसी प्रकार यदि मिल मालिकोंपर कोई आकस्मिक संकट आ पड़े, तो हमें उससे लाभ उठानेका या मालिकोंको परेशान करनेका खयाल छोड़कर उनकी मदद के लिए दौड़ पड़ना चाहिए ।[२]

[ गुजरातीसे ]
एक धर्मयुद्ध

१५२. अहमदाबादके मिल मजदूरोंकी हड़ताल

मार्च ५, १९१८

पत्रिका -८

इस अंक में हम संसार-प्रसिद्ध सत्याग्रहियोंका वर्णन नहीं करेंगे, बल्कि यह बतानेकी कोशिश करेंगे कि हमारे-आपके जैसे आदमी भी कितना दुःख उठाने में समर्थ हुए हैं। यह हमारे लिए अधिक लाभदायक होगा, और हमें अधिक दृढ़ बना सकेगा । हजरत इमाम हसन और हुसैन बड़े धीर-वीर सत्याग्रही थे । हम उनके नामकी पूजा करते हैं, लेकिन उनके स्मरणसे सत्याग्रही नहीं बन पाते। हम सोचते हैं कि उनकी ताकतका हमारी ताकत से क्या मुकावला ? ऐसा ही स्मरण करने योग्य नाम भक्त प्रह्लादका है। लेकिन हम यह सोचकर रह जाते हैं कि उनकी-सी भक्ति, वैसी दृढ़ता, वह सत्य और शौर्य हम कहाँसे लायें ? फलतः हम जैसे थे, वैसे ही बने रहते हैं। इसलिए आज हम यह देखें कि हमारे आपके जैसे आदमियोंने क्या किया । हरवतसिंह[३]ऐसा ही एक सत्याग्रही था। वह ७५ वर्षका एक बूढ़ा आदमी था । वह सात रुपये माहवारपर पाँच सालकी गिरमिटपर दक्षिण आफ्रिकाके खेतोंमें मजदूरी करने पहुँचा था । पत्रिकाके पिछले अंकमें २०,००० भारतीयोंकी जिस हड़तालका जिक्र आया है, उसमें हरबतसिंह भी शरीक हुआ था । कुछ हड़तालियोंको जेलकी सजा हुई थी; इनमें बूढ़ा हरवतसिंह भी था। उसके साथियोंने उसे समझाया। कहा : "बाबा, दुःखके इस समुद्र में पड़ना तुम्हारा काम नहीं है। तुम जेलके

  1. यह भाषण तालावन्दीके ग्यारहवें दिन दिया गया था ।
  2. भाषणका बाकी हिस्सा उपलब्ध नहीं है ।
  3. देखिए खण्ड १२, पृ४३१४-१६